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________________ ६०५ त्रिलोमा पाषा: ७५८ 3r .. २२९८0000000 योजन धनुषकति तथा इसी के वर्गमूल ४ ' को अपने ही भागहार (१९) से भावित करने पर २२२३०१६ हिमवत् पर्वत के धनुष का प्रमाण प्राप्त होता है। हमवत क्षेत्र के वाण ७... को वृत्त विष्कम्भ १९..... में से घटा देने पर १६३०००० योजन अवशेष रहे। इसको चौगुणे वाण के प्रमाण २८०.०० से गुगित करने पर ५१२४०००००... योजन जीरा की कृति होती है, तथा इसी जीवा कृति के वर्गमूल ७१५५२२ को अपने ही मागहार से भाजित करने पर ३७१७५५ योजन हैमवत क्षेत्र की बोवा का प्रमाण प्राप्त होता है । हैमवत क्षेत्र के वाण ७०... की कृति ४६.noon... को ६ से गुणित करने पर १९४०.०...०० योजन प्राप्त हए, इन्हें जीवा कृति में जोड़ देने पर-( ५१२४०००.०००+२६४.00000.0 ) = ५४१८०००००.०० योजन हैमवत क्षेत्र की धनुष कृति होती है। तथा धनुषकृति के वर्गमूल ७३६०४० को अपने ही भागहार से भाग देने पर ३८७४०१५ हेमवत क्षेत्र के धनुष का प्रमाण प्राप्त होता है। ___ महाहिमवत् पर्वत के वाण १५०००० योजन को वृत्त विष्कम्भ १९४०.00 में से कम करने पर १७५०००० अवशेष रहे । इनको चौगुणे वाण के प्रमाण ( 8°°) से गुरिणत करने पर १०५००००००००० योजन जीवा की कृति का प्रमाण होता है। तथा इसी के वर्गमूल १०३०५५ को अपने ही भागहार से भाजित करने पर ५३६३१, महाहिमवत् पर्वत की जीवा का प्रमाण होता है । महाहिमवत् पर्वत के बाण १५... की कति २२५०००००००. योजनों को ६ से गुणित करने पर १३५०.००००००० योजन होता है, इसको जीवाकृति में पोर देने पर (१०५००००.०...+ १३५०००००००००)-११८५०००.००.०० योजन धनुष की कृति होती है, और इसीके वर्गमूल १०८८५७.७ को अपने ही भागहार से भाजित करने पर २७९६३३९ योजन महाहिमवत् पर्वत के धनुष का प्रमाण प्राप्त होता है । हरिवयं क्षेत्र के बारण ३t...0 योजनों को वृत्तविष्कम्भ १६००००० योजनों में से घटा देने पर १५१०००० योजन अवशेष रहे । इन्हें चौगुणे वाण के प्रमाण १२४०००० योजनों से गुणित करने पर १९७१६००...... मोजन जीवा की कृति होती है. और इसी जीवाकृति के वर्गमूल १४०४१३६ को अपने ही भागहार से भाजित करने पर ७३९०११० योजन हरिवर्षे क्षेत्र में जीवा का प्रमाण होता है, तथा इसी क्षेत्र के बाण ३१.०.की कृति ९६१००००००.० को ६ से गुरिणत करने पर ५७६६०....००० योजन हए । इसको जीवा की कृति में जोड़ देने पर ( १९७१६०.......+ KT पर पुरा
SR No.090512
Book TitleTriloksar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Siddhant Chakravarti, Ratanchand Jain, Chetanprakash Patni
PublisherLadmal Jain
Publication Year
Total Pages829
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size19 MB
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