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________________ धाम उह मरतिमेलोकाधिकार १७६५.०००...)-२४४८२.......० योजन धनुष कृति का प्रमाण होता है तथा इसीके वर्गमून ५ को अपने ही मागहार का भाग ५८४.१२१६ पाणमा हरिव के धनुष का प्रमाण प्राप्त होता है। निषधगिरि के बाण ६३... योजनों को वृत्त विष्कम्भ १९००.०० में से कम करने पर १२५०.०० योजन अवशेष रहे । इसको चौगुणे वाण के प्रमाण २५२०.. मे गुणित करने पर ३९.100.00... पोजन जीवा की कृति होती है, और इसीके वर्गमूल १७८६९६६ को अपने भागहार का भाप देने पर ४१५६ योजन निषधगिरि की जीवा का प्रमाण मा होता है । तपा निषधगिरि के वाण ६३०००० योजन की कृति ३९६६........ योजनों को ६ से गुणित करने पर २३१४.000000 होते हैं। इसको जीवा को कृति में जोड़ देने पर ( ३२.४....... २३८१४०००.0000)=५५८१८०००००००० योजन धनुष की कृति होती है, और इसीके वर्गमूल २३६२५८३ को अपने भागहार का भाग देने पर १२४३ निषष गिरि के धनुष का प्रमाणा प्राप्त होता है। विदेह के प्रमाण १५:००० को वृत्त विष्कम्भ १६00000 में से घटा देने पर ९५०.. मवशेष रहे । इन्हें योगणे वाण ३८००.०० से गुणित करने पर ३६१......1000 जीवा कृति का प्रमाण हुआ, तथा इसी के वर्गमूल ५११०० को अपने हो भागहार का भाग देने पर १०००० अर्घ विदेश की जीवा का प्रमाण प्राप्त होता है तथा अविवेद के वाण ११०० की कृति ५०५५९४११०000 को ६ से गुणित करने पर ५४१५....... योजन हुए। इनको जीवा की कृति 8000०००० में मिला देने पर १०२५००..100 योजन धनुष की कृति का प्रमाण मान होता है, तथा इसी के वर्गमूल १६४ को अपने ही मागहार का प्राय देने पर १५८११४ योवन अविदेह के धनुष का प्रमाण प्राप्त होता है। नोट:-कति स्वकम संख्या का वर्गमूल निकालने के बाद अवशेष पचे प्रकों को घोर दिया गया है। अप दक्षिणभरतादिक्षेत्रपर्ववानां जीवाधनुषोः प्राधानीतागाधानवकेनाह दक्खिणभरहे जीवा माउसगणवय होति पारकला । पापं बाकसमसयणक्यसास व एकाला ।। ७६९ ॥
SR No.090512
Book TitleTriloksar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Siddhant Chakravarti, Ratanchand Jain, Chetanprakash Patni
PublisherLadmal Jain
Publication Year
Total Pages829
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size19 MB
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