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________________ वाचा : ७६८ मतिर्यग्लोकाधिकार ६० इसके १८५५५५ वर्गमूल को अपने ही भागहार का भाग देने पर १७६६१४ योजन दक्षिण भारत के धनुष का प्रमाण प्राप्त हो जाता है । विजया के वाण का प्रमाण २८८१ योजन है। इसका समुच्छेद करने पर ५४३५ योजन हुआ। इसे जम्बूद्वीप के वृत्त विष्कम्भ १६००000 में से घटा देने पर १८१५योजन अवशेष रहे। इसको चौगुणे वाण के प्रभार (१५५ x ३ = २१०० से गुणित करने पर ( १८९४५६xx प्रमारण हुआ और इसके वर्गमूल १३ १९ २१९०० ) = ४१४९००९७५०० योजन विजया की जोवाकृति का १९ उद्द २०३६११ को अपने ही भागहार का भाग देने से १०७२०१३ योजन विजयार्ध पर्वत को जीवा का 15 उ SET की कृति २६६७५६२५ को ६ से गुणित करने पर १७३८५३७५० योजन हुए। इसमें जीवा कृति जोड़ देने पर ( ४९४६००९७५०० + १७९८२३७५० ) = ४१६६९९५१२१०] योजन विजयार्ध की धनुप्रकृति हुई तथा इसके वर्गमूळ २०३३ को अपने ही भागहार का भाग देने पर १०७४२२५ योजन विजयाचे पर्वत के धनुष का प्रमाण प्राप्त हुआ । ६१ 14 JE प्रमाण प्राप्त होता है। विजया के वाण ठु 13 ५९ १ ११ उत्तर भारत में समुच्छिन बारा (५२६१३) के प्रमाण १०००० को जम्बू द्वीप के वृत्तविष्कम्भ १००००० में से घटा देने पर १८६०००० योजन अवशेष रहे। इसको चौगुणे वाण के प्रमाण ४०००० से गुणित करने पर ७५६०००००००० योजन उत्तर भरत की जीवाकृति का प्रमाण हुआ, तथा इसी के वर्गमूल २७४६५४ को अपने ही भागहार से भाजित करने पर १४४७१५२ योजन उत्तर भरत को जीवा का प्रमाण प्राप्त हुआ। उत्तर भरत के वाण १०००० की कृति १०००००००० योजन हुई । इसे ६ से गुणित करने पर ६०००००००० योजन प्राप्त हुए। इसको जीवा की कृति में जोड़ देने पर ( khonevorce+ ६०००००००० ) =७६२०००००००० घनुष कृति प्राप्त होती है, तथा इसके वर्गमूल २०१० को अपने हो भागहार से भाजित करने पर १४५२०१ योजन उत्तर भरत के धनुष का प्रमाण प्राप्त होता है । १९ उदन TES ३६५ 351 q १५ १९ १५ १९ हिमवत् पर्वत के बाल ३०००० योजन को जम्बूद्वीप के वृत्तविष्कम्भ १६००००० में से घटा देने पर १८७०००० योजन शेष रहे। इसको चौगुणे वाण के प्रमाण १२०००० से गुणित करने पर २२४४०००००००० योजन हिमवद् पर्वत की जीवा कृति का तथा इसी के वर्गमूळ ४७२७०६ को अपने ही भागहार से भाजित करने पर २४३२१ योजन हिमवत् पर्वत की जीवा का प्रमाण प्राप्त होता है । हिमवत् पर्वत के वाण ( 8 ) की कृति ६०००००००० को ६ सें गुणित करने पर ५४०००००००० योजन हुए। इसको जीवा की कृति में जोड़ देने पर ( २२४४००००००००+ ५४०००००००० - ११ उ१५ ३१ १ 371
SR No.090512
Book TitleTriloksar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Siddhant Chakravarti, Ratanchand Jain, Chetanprakash Patni
PublisherLadmal Jain
Publication Year
Total Pages829
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size19 MB
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