________________
त्रिलोकसार
गाथा : ७६
सु। २३५१ बलविस्था १११° समानछेवेन २०१3५०० वृत्तविष्कम्मे २ ० योजयित्वा १३.६० एतच्चतुणिलेषुणा ००१२०° गुणिते गुण्यराशे १० हरि एकोनविशतिनवेति १६ I & विषाकृत्य गुणकारस्थपञ्चशून्यानि ६०००.. गुण्यापारने संस्थाप्य १३१७७६६००००.० गुणकारनवान गुण्यहारनवामपवर्य शेषहारे १६४१६ परस्परगुणिते ३६१ कुरोषनुःकृतिः स्पात 1310018922200 । भाणकृति ५०.९४११०००० षडभिगुणयित्वा 3030480०.०' एतस्मिन् धनुःहतो कनिते १.०१४23492०००० कुरक्षेत्रस्य जीवाकृतिभवति । एवं 'सुहीणं विखंभ' इत्यादि सप्तगायोक्तरिधानं भरतामिक्षेत्रेषु हिमववादिपर्वतेषु च
अब अन्य प्रकार से धनुष की कृति और जीवा की कृति प्राप्त करने के लिए फरण सूत्र कहते हैं :--
गाथार्य :-वृत्त विष्कम्भ के प्रमाण में वाण का अर्ध प्रमाण जोड़ने पर जो लब्ध प्राप्त हो उसको वाण के चौगुणे प्रमाण में गुरिंगत करने पर धनुष की कृति का प्रमाण प्राप्त होता है, तथा वाण की कृति को छह गुणित कर वनुष की कृति में से घटा देने पर जीवा की कति का प्रमाण प्राप्त होता है ।। ७६६
___ विशेषार्थ:--जम्बू द्वीप के कुरु क्षेत्र में वाण का प्रमाण २१११०० योजन है। इसके अधं भाग का प्रमाण १५३३०° हुआ। इसको ह से समच्छेद करने पर ( १३५००x१)1°१३५०० योजन प्राप्त हुए इन्हें वृत्त विष्कम्भ के प्रमाण ( २.१७५४१० ) में जोड़ कर प्राप्त हुए १३१७१९५० योजन लब्ध को चौगुणे वाण के प्रमाण ०९१०० से गुणित करने के लिए गुग्य राशि के भागहार १५५ के १६ और ६ इस प्रकार दो भाग कर ( ० x ५०१९१० ) गुणकारस्थ ( ९००.०० के ) ५ शुभ्यों को गुण्य राशि ( १३१७७९९. ) के आगे स्थापन करने से १३१ERE.mo.x* इस प्रकार की स्थिति प्राप्त हुई। इसमें गुणकार के ६ के अङ्क से गुण्यकार के ६ का अपवर्तन कर अवशेष भागहारों को परस्पर में (१९४१९ ) गुणिल करने पर ३६१ अर्थात् १३५७७९९०००००० योजन कुरुक्षेत्र के धनुष की कृति का प्रमाण प्राप्त हुआ।
कुरुक्षेत्र के ( २२१२०० योजन ) वाण के वर्ग का प्रमाण ५०६२५०.०० योजन है। इसे ६ से गुरिणत करने पर ३०३७५०००० 0.0 योजन प्राप्त हुए इन्हें धनुष की कृति में से घटा देने पर ( १३१७७६६०.००-३.३७५००००००० = १०१४०४६००.०० योजन = २८.10.10.. योजन कुरुक्षेत्र की जीवा की कृति का प्रमाण प्राप्त होता है।
कुरुक्षेत्रों के धनुषाकार क्षेत्र की जीवा बादि का प्रमाण निकालने का विधान जिस प्रकार
-१५x1
ST
LE