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________________ गाथा :५६ निरतियरलोकाधिकार 9.1 11 १.. विशेषा-अम्बूद्वीप में कुरुक्षेत्र के वाण का प्रमाण २२५००० योजन है इसका दूना । २२३००४२ )= ४५०००० योजन होता है। इसका माग धनुष के गं १३१७.८९०००.०० योजनों में देना है, अतः १३१७७९६..........- १३१७७९९०० को पूर्वोक्त विधि से अपवर्तन करने पर १५४१५८ योजन प्राप्त हुए और अवशेष रहे। इनको अपर नीचे ५ से अपवसित करने पर हए। इन्हें स्व अंश १५४१२८ योजनों में समच्छेद विधान से मिकाने पर ( १५४१२८४ )=२६३३५६८० योजन हुए । अथवा १३१७७९९,०००° x = २६३५४१८० योजन हुए। इनमें से समुच्छिन्न किया हुआ २०२५.०० योजन वाण का प्रमाण घटाने पर । २६३५५९८० – २०२५०००) = २४३३०९८० योजन अवशेष रहे। इन्हें आधा करने पर ( २४३३०१८. x 1 = १२१६५४२० योजन प्राप्त हुआ। इसमें अपने ही भागहार { १७१ ) का भाग देने पर ७१५४३/30 योजन कुरुक्षेत्र के वृत्तविष्कम्भ का प्रमाण प्राप्त हुआ। तथा समच्छेद द्वारा अपने अंश ७११४३ में जोड़े हुए 8 से प्राप्त हुए २२५६५० योजन यस व्यास के प्रमाण का वर्ग( १२१६५४९० x १२१६५४९० )-- १४७१६६१४६९४०१० योजन होता है। इसमें१३ १४EEMO. धनुष कृति के अर्धप्रमाण ६५८८६६५०... को ८१ से समच्छेन करने पर अर्याद भाज्य भाजक दोनों को ६१ से गुणित करने पर जो ( ६५८८९९५:०००.x ) = ५३३७०८५६५००००० योजन प्रमाण बोड़ कर प्राप्त हुए । १३१७७६६00.000+ ५३३७०८५६५००००० ) -- २०१३७००.६४४०१०० योजनों का वर्गमूल निकालने पर १४१६०४६० योजन प्रार हुए। इसमें से वृत्त व्यास १२१६५४६• योजन घटा कर अवशेष रहे-1 १४१६०९. १२१६५४९० } - २०२५००० योजन के भागहार १७१ के १९ और । अर्थात् १९४६ ऐसे दो हिस्से कर ( २०२५.०० ) ९ के अङ्क से भाजित करने पर २२५... मोजन कुरुक्षेत्र के बाण का प्रमाण प्राप्त होता है। अथ प्रकारान्तरेण धनुःकृतिजीवास्पोरानपने करणसूत्रमाह इसुदलजुदविखंभो चउगुणिदिसुणा हदे द घणुकरणी। चाणकदि बहिं गुणिदं तत्धुणे होदि जीवकदी || ७६६ ।। इषुदलयुतविष्कम्भः चतुर्गुणिलेषुणा हते तु धनुः करणी। बाणकृति षड्भिः गुणितं सोने भवति जीवकृतिः ।। ४६६ ॥ 31 ११ प. x ७६
SR No.090512
Book TitleTriloksar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Siddhant Chakravarti, Ratanchand Jain, Chetanprakash Patni
PublisherLadmal Jain
Publication Year
Total Pages829
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size19 MB
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