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त्रिलोकसाथ
चाची ७६४
आधा करने से (४८५०००० x ३ ) = २०२५००० योजन हुआ । इस १७१ भागहार के १६४६ अर्थाद
१७५
१७१
१६ और ९ ऐसे दो टुकड़े कर ९२०२५००० को अपवर्तन करने पर २१५००० योजन प्राप्त हुए और भागद्दार १६ ही रहा मन: २२५००० योजत कुरुक्षेत्र के बाण का प्रमाण प्राप्त हुआ । अथवा
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६००
२०२५००० को ६ अंक से अपवर्तन अर्थात् अंश और भागहार दोनों में का भाग देने पर २२५०००
१७५
११
योजन कुरुक्षेत्र के बाण का प्रमाण प्राप्त होता है ।
अथ प्रकारान्तरेण वृत्तविष्कम्भवाणयोरानयने कर सूत्रमाहदुगुणिसुदिघवो बाणोणो मद्धिदो हवे वाम्रो । वासक दिसहिद धणुकादिदलस्स मूलेषि वासमिसुखे ||७६५ ।। द्विगुपु हितधनु बाणोनः अधितो भवेत् व्यासः । व्यायकृतिसहितधनुष्कृतिदलक्ष्य मूलेऽपि व्यासमिधुशेषं ॥७६५||
बुगुइ २२५००० द्विगुणीकृत्य ४५०००० अनेन धनु
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संविधिना भक्त्या १५४१२८ शेष उपरि पभिरपवर्तिते एवं मेला २६३५५६ मिन्सच्या २०२५००० ऊतयित्वा
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१३१७७६६०००००० प्रावदपय
31 h
יך
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१२१६५४९० भक्त सति ७११४३ कुरो: वृसध्यासः स्यात् । समफलेवेन
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सम्पासं
पत्र स्वां समच्छेदेन
प्रषीकृश्य
२४३३० ६८०
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२०१
स्वांश युक्त
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१७१
२९९४१
१२१६५४६० वर्ग गृहोल्ला १४७६६६१४६६४- १०० अत्र धनुः कुले १३१७७६९००००० एवं ८८६३५०7400 एकाशीत्या ८१ समच्छेवं कश्या ५३३७०८५६५०००
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संयोजय
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२०२४१
२०१३७०००६४४०१०० मूलं गृहीत्वा १४१२०४९० मत्र व्यास १२१६५४६० होनं कृत्वा २०२५००० ग्रस्य हरिमेकोनविंशतिर्नवेतिद्विषा १६४६ अत्रस्थनवान भक्त कुरुक्षेत्रस्य वाणः स्यात्
२२२४१
१०१
१७"
791
२२५००० ॥ ७६५ ॥
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आगे अन्य प्रकार से वृत्तविष्कम्भ और वास का प्रमाण लाने के लिए करण सूत्र कहते
गाथार्थ :- धनुष के वर्ग को दुगु वाण का भाग देने पर जो ध प्राप्त हो उसमें से बारा के प्रमाण को घटा कर अवशेष का आधा करने पर वृत्तविष्कम्भ के व्यास का प्रमाण प्राप्त होता है, तथा वृत्त व्यास के वर्ग में धनुष का वर्ग जोड़ने पर जो लब्ध प्राप्त हो उसका आधा कर वर्गमूल निकालना और इस वर्गमूल के प्रमाण में से वृत्त व्यास का प्रमाण घटा देने पर वाण का प्रमाण प्राप्त हो जाता है ।। ७३५ ।।