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त्रिलोकसार
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अथ प्रकारान्तरेण वृत्तविष्कम्भवाणयोरानयने करणसूत्रमाह
दगुणिसु कादिजुद जीवामगं चउमाणमाजिए पत्र । जीवा घणकदिसेमो छभनो तप्पदं गाणं ॥७६३ ॥ विगुण्येषु कृतियुतं जीवावर्ग चतुर्मारणभक्त वृत्तं ।
जीवा धनुः कृतिशेपा षड् मक्तः तत्पदं बाणं ।। ०६३ ।। दुगु । इषु २२५.०० विगुणी कृत्य ४५०००० वर्ग गृहीत्वा २०२५००००००००। पत्र जीवा ५३... वर्ग २८.१०..... समच्छगोकतं १०९४०४६ ०.००० सयोग्य १२१६५४६००.००० प्रस्मिाचतुर्गुणितबारणेम Ress. प्राग्ववपवतविपिना भात कुरुक्षेत्रस्य पुतविष्कम्भः स्याद १२१६५४६ । समच्छेवीकृते श्रीवावर्ग १.१४०४६...... पनुः फूतो १३१७७६६.00... अपनीय ३०३७५००००००० षभिभगवा ५०६२५००.००० मूले पहीते २२५००० कुरुक्षेत्रस्य पाणः स्यात् ॥७६३॥
अब प्रकारान्तर से वृत विष्कम्भ और वारण के प्रमाण को प्रात करने के लिए करण सूत्र कहते हैं:
गाथा:-दुगुण वाण के वर्ग में जीवा का वर्ग जोड़ने से जो झन्ध प्राप्त हो उसको चौगणेवाण के प्रमाण से भाजित करने पर वृत्तविष्कम्भ का प्रमाण होता है तथा जीवा की कृति को धनुष की कृति में से घटा कर अवशेष को ६ से भाजित कर वर्गमूल निकालने पर जो प्रमाण प्राप्त हो वही कुरुक्षेत्र के वाण का प्रमाण है ॥ ७६३ ॥
विशेषार्थ:-जम्बूद्वीप के कुरुक्षेत्र का वाण २२५००० योजन है इसके दूने ४५०००० योजनों का वर्ग ( ४५०००० x ११०००० ) - २०२५०००0.00 योजन हुआ। इसमें जीवा के प्रमाण ५३००० के वर्ग ( ५३००० x ५३.० - २८०६०००००० को 2 से समच्छेद कर (१८०९०....0x8)=१०१४.४६.००.०० योजनों को जोड़ने पर ( २०२५०:००००. + १०१४०४९०००००० - १२१६५४६..... योजन लब्ध प्राप्त हुआ। इसको चौगुणे वाण के प्रमाण ... से पूर्वोक्त अपवर्तन विधि के अनुसार भाजित करने पर ( १२१६५४९०००.००
न) = १२१६५४९० योजन कुरुक्षेत्र के वृत्त विष्कम्भ का प्रमाण प्राप्त हुआ। समध्छेद किए हुए जीवा के वर्ग ( १०१४०४६.. ) को धनुष की कृति