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________________ पापा : ७६१ नपतिपंग्लोकाधिकार अप कुविक्षेत्राणां स्थूलसूक्ष्मक्षेत्रफलानमने करणसूत्रमाह जावा सुपाद जोपारसुददल च पयं । दसकरणिबाणगुणिदे सुहुमिदरफलं च धोखेचे ।।७६२।। जीवाहतेषुपादं जीवाइषुयुतदलं च प्रत्येक । दशकणिबाणगुणिते सूक्ष्मतरफलं च धनुः क्षेत्र ७६२|| नोवा । कुरुक्षेत्रयोः २२१००० चतुर्माश ५५३५ जीबया ५३.० हत्या २१४५३५०००० पृथक् संस्थाप्य बी५३... समसछेदोकृत्य1०१३०० इषौ२२१२०० सयोज्या २५५१००वलयित्वा'१६०वमपि पृषकिनक्षिप्य स्थापितयोरमयोर्मध्ये प्रत्येक प्राक् समापिसं २९८१२५००० विवसंमागेत्यादिना करणि हया ६५१५६२५००००००- मूले गृहीते ६४२७५४०२७४ एतत् कुरुषनुः क्षेत्रस्य सूक्ष्मफल भवति । पुरस्ताव स्थापित तु पारणेन २२५९०° गुपिते करोर्धनुषः स्पूलफल भवति १३८६००००.०.०॥७२॥ अब कुरु आदि क्षेत्रों का स्थूल सूक्ष्म क्षेत्रफस लाने के लिये करण सूत्र कहते है गाभार्थ:-जीवा द्वारा गुणित वाण का चतुर्थपाद तथा जीवा और वाण के योग का अर्थ भाग इनमें से एक का वर्ग कर दशगुणित करने पर और दूसरे को वारण के प्रमाण से गुणित करने पर कम से धनुष क्षेत्र का सूक्ष्म और स्थूल क्षेत्रफल प्राप्त होता है ।। ७३२ ॥ विशेवा:-कुरुक्षेत्र के वाण का प्रमाण २२५९०० योजन है। इसके चतुर्थ भाग ५.३५० को जीवा के प्रमाण ५३००० योजन में गुणित करने पर ( २३५९०० x 390° )= ११८११५१००० योजन लब्ध प्राप्त हुआ। इसे पृथक् स्थापित करना, तथा ५२ से समच्छेद किया हुआ ५३००० योजन जीवा का प्रमाण ( ५३.०४9)=१०२५२०० योजन और वाण के २५००० योजन प्रमाण को जोड़कर { १०१११००+१२५२०० = १२३२००० योजन हुए। इनके अधं भाग ( १९३४ }1180 योजनों को भी अलग स्थापित कर दोनों में से प्रथम स्थापित २५८१३५०००० योजनों का "विष्कम्भवगा" इत्यादि गापा सूत्र ६६ के अनुसार वर्ग कर दश गुणित करने पर( २१८१२५.० x २६८१२५.४.० ४१.) = ८८८७८५१५३२५०००००००० योजन इए सपा इनका वर्गमूल प्रहण करने पर १४२११०२७४ मोजन होता है । यही कुरु क्षेत्र के सूक्ष्म क्षेत्रफल का प्रमाण है । अति कुरुक्षेत्र के तारतम्यता से एक एक मोजन लम्बे चौड़े ५४५४५४०२४ टुकड़े हो सकते हैं। ___ सब पीछे स्थापित "१२०० योजनों को वाण के प्रमाण २२५९०० से गुरिणत करने पर {"१२००४ २२५९०० )='19928०००० योजन होते हैं। यही कुरुक्षेत्र का स्थल क्षेत्रफ है।
SR No.090512
Book TitleTriloksar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Siddhant Chakravarti, Ratanchand Jain, Chetanprakash Patni
PublisherLadmal Jain
Publication Year
Total Pages829
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size19 MB
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