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________________ नवति ग्लोकाधिका इदानीं धातकीखण्डपुष्करार्धं स्थितमेरूणां तद्भदशालवनद्वयस्य च व्यासं निरूपयतिचणउदिसमं णवसडसचिगिलक्खमट्टपणचं | पण्णरसं बेलक्खा खुल्ले तं मसालदुगे || ७५४ || चतुर्भवतिशतानि नवसप्ताष्टसप्ले कलक्षमष्टपन सप्त । पचदशे द्वे क्षे शुल्लके ते भद्रशालद्वये ।। ७५४ ॥ पाया ! ७५४-७५५ 'चतुवशितानि १४०० नवसप्ताह सप्ताङ्कोस रंक लक्षं १०७८७६ प्रस पश्चदशासरे लक्षे २१५७५८ ययासंख्यं तुल्लाह मन्वारघातको खण्ड पूर्वापर भालद्वये पुष्करार्धे पूर्वापर भद्रशालद्वये च ध्यासामो ज्ञातव्यः । घातकीखण्डपर भद्रशालाङ्क १८७८७९ पुशपूर्वापर भालोकं २१५७५८ 'पदमवएडसीसो विवरण उत्तरगभट्सालवण' इत्युक्तरवावाशीत्या मागे कृते तयोदक्षिणोत्तर भद्रशालवनव्यासो भवति १२२५१६ / २४५१ भा ॥ ७५४ ॥ स्थित मेरु पर्वतों और उन सम्बन्धी दोनों भद्रशाल वनों के अब बात की सप और पुष्करा व्यास का निरूपण करते हैं : १९१ गाथार्थ :- चौरानवे सौ योजन एक लाख सात हजार बाठ सौ उन्यासी योजन और दो लाख पन्द्रह हजार सात सौ अट्ठावन योजन कम से क्षुल्लक मेरु और दोनों भद्रशाल वनों के व्यास का प्रमाण है ।। ७५४ । विशेषार्थ :- चारों क्षुल्लक मेरु पर्वतों का व्यास १४०० योजन है, घातकी खण्ड सम्बन्धी भद्रगोल वनों का पूर्व-पश्चिम व्यास १०७८७६ योजन है, तथा पुष्कराक्षं सम्बन्धी भद्रशाल वनों का पूर्व-पश्चिम व्यास २१५७५८ योजन है । "पढमवसीदंसो दक्खिरण उत्तरगभद्र माल वां" इत्यादि पूर्वोक्त गाथा ६१२ के अनुसार घातकी खण्ड सम्बन्धी भद्रशाल वनों के पूर्व-पश्चिम व्यास ( १०७८७१ योजनों को से भाजित करने पर ( 101 ) = १२२५३३ योजन दक्षिणोत्तर भद्रशाल वनों का व्यास प्राप्त होता है, तथा पुष्करार्थ सम्बन्धी भद्रशाल वनों के पूर्व-पश्चिम व्यास (२१४७५८) को से भाजित करने पर ( 322296 ) - २४५१३ योजन दक्षिणोत्तर भद्रशाल वनों काव्यास प्राप्त होता है । अथ द्वीपद्वयावस्थितविजयानां व्याससंख्यामाद तिणमण्णव तिष्णमं तु चउणउदिमण उदेककं । जोयणच उत्थभागं दुदीपविजयाण विक्खंभो ।। ७५५ || १ चतुः शठोत्तरनवतिशतानि ( ब०, प० ) ।
SR No.090512
Book TitleTriloksar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Siddhant Chakravarti, Ratanchand Jain, Chetanprakash Patni
PublisherLadmal Jain
Publication Year
Total Pages829
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size19 MB
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