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त्रिलोकसार
त्रिभः षण्णव स्यष्टमं तु चतुर्णवति सप्तनवत्येकं । योजनं चतुर्थभागं द्विद्वीपविजयानां विष्कम्भः ।। ७५५ ॥
चतुवतिमनवत्येक योजनानि
तिप । त्रिनभः षण्णव योजनानि त्र्यहमांशानि ९६०३ मा योजन चतुर्थभागाधिकानि १६७९४३ क्यासंख्यं बात की खण्ड पुष्करावंडीपद्वयविजयाना विष्कम्भः स्यात् ।। ७५५ ॥
अब दोनों द्वीपों में अवस्थित विदेह देशों के व्यास की संख्या कहते हैं :
५१२
गाथार्थ :- दोनों द्वीपों में स्थित विदेह देशों का विष्कम्भ क्रमशः मी हजार छह सौ तीन योजन और एक योजन के आठ भागों में से तीन भाग ( योजन) तथा उन्नीस हजार सात सौ चोरानवे योजन और एक योजन के चार भागों में से एक भाग ( ) प्रमाण है || ७५५ ||
पाया : ७५५-७५६-७५७
विशेषार्थ :- धातकी खण्ड द्वीप में स्थित विदेह देशों के व्यास का प्रमाण ६६०३ योजन और पुष्कराधं द्वीप में स्थित विदेह देशों के व्यास का प्रमाण १९७२४) योजन है । साम्प्रतं द्वीपयावस्थितगजदन्तानामायामं गाथाद्वयेनाह
सरिसायदगजदंता णवणमदुगसुण्णतिष्णि उच्चकला / तिघणदुगकपणतिय णवपणक दिणवयचवण्णं ।। ७५६ ।। सोलेक डिसिद्विगि णवेक्कदुगदोण्णिदुक दिणमदोष्णि | देउचरकुरुचावं जीवा बाणं च जाणेज्जो || ७५७ ॥ सदृशायतगजदन्ता नत्रन भौतिकशून्यत्रीणि पट्कलाः । त्रिधनद्विषट्पचीणि नवपञ्चकृति नवकपट्पचाशत् ॥७५६॥ बोषिकं नवं कविकद्वय विकृतिनभो । देवोत्तरकुरुवा जीवा वाणुं च ज्ञातव्याः ॥ ७५७ ॥
सरिसा । जम्बूद्वीपश्चसटरा गजबन्ताम४नवन भौद्विक शून्योत्तरत्रियोजनानि षट्कलाविकानि ३०२०९५९ प्रायामः स्यात् । धातकीखाल्यम हा गजबन्तानामायामो यथासंख्यं त्रिघनद्विषट्कपकोलत्रियोजनानि ३५६२२७ नव पक्षकृतिनथषडंकोत्तर पश्र्चयोजनानि स्युः ४६६२५६ ॥ ७५६ ॥
सोले । पुष्करार्षास्वमहागजदन्तानामायामो यथासंख्यं षोडशंकषष्टको तरक योजनाम १६२६११६ नकद्विकयष्टिकृतिभ्योत्तरद्वियोजनानि स्युः २०४२२१६ देवोत्तरकुर्वोश्चापं जीवा बारणं च वक्ष्यमाणप्रकारेण ज्ञातव्याः ॥ ७५७ ॥
अब तीनों (टाई) द्वीपों में स्थित गजदन्त पर्वतों का आयाम दो गाथाओं द्वारा कहते
हैं :
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