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________________ गाया : ७५: २ गरलियंग्लोकाधिकार ५५१ विशेषार्थ:-पूपिविदेह क्षेत्रोत्पन्न १४०.७८ नदियाँ और भरतादि यह क्षेत्रोत्पन्न ३९२०१२ नदिया मिलाकर १७६२०१० नदियां जम्बुद्वीप में हैं। अथ जाबूद्वीपस्थमन्दगीनां व्यासं निरूपयति गिरिभद्दमाल विजयावाखारविभंगदेवरण्णाणं । पुवावरेण चाम्रा एवं जंबू विदेहम्हि ।। ७५१ ॥ गिरिभद्रशालविजयवक्षारविभंगदेवारण्यानाम् । पूपिरेण व्यासा एवं जम्बुधि देहे ॥७५१ ।। गिरि । मेगिरेः १ मशालयोः २ देशानां १६ वक्षाराणा - विभङ्गनवीना ६ देवारयपयो। २ जम्बूद्वीपस्वविहे पूर्वापरेण व्यासा एवं वक्ष्यमाणप्रकारेण कश्यन्ते ॥ ७५१ ॥ जम्बूदीपस्थित मेह आदि के व्यास का निरूपण करते हैं__गाया :-जम्बूद्वीप स्थित विदेह क्षेत्र में एक मेरू, दो भवशाल, सोलह विदेह देश, आठ वक्षार, पर्वत, छह विभंगा नदी और दो देवारण्यों का पूर्व पश्चिम व्यास { आगे कहे जानेवाले प्रमाण के अनुसार ) है ॥ ७५१ ॥ __ अथ तेषां मेवानां व्यासानयनविधानमाह गिरिपहुदीणं बासं इहणं सगगुणेहि गुणिय जुदं । अवणिय दीवे सेस इडगुणोपट्टिदे दु तन्वार्स ।।७५२।। गिरिप्रभृतीनां व्यासं इष्टोनं स्त्रकगुणः गुणयित्वा युतं। अपनीय द्वीपे शेषं इष्टगुणापयतिते तु तद्व्यासं ।। ७५२ ॥ गिरि । नातम्येष्टमन्दरामन्यतमव्यासं परित्यज्य इतरेषा गिरिप्रमतौना वक्ष्यमाणण्यासं भद्र २२.०० वेश २२१२४ वक्षार ५०० विभंग १२५ वेवारण्य २९२२ स्वकीयस्थकोपगुणकारेण २।१६।।६।२ गुणयित्वा ४४०..! ३५४०६ । ४०००। ७५० । ५८४४ एवं सर्व मेलयित्वा ६०... एतजम्बूद्रोपपासे १००००० अपनीष शेषे १०००० इष्टगुणकारेणापहृते सति जातपेण्यास पापाति १०००० १७५२ ॥ अब उन मेरु आदिकों के प्रयास प्राप्त करने का विधान कहते हैं : गायार्थ :-मेह आदिक किसी इष्ट व्यास को छोड़ कर अन्य सभी के व्यास को अपने अपने गुणाकार से गुणा कर परस्पर में सभी को जोड लेवे। तथा योगफल को जम्बूद्वीप के व्यास में से घटाने पर जो अवशेष बचे उसका इष्ट ( विवक्षित ) मेह आदि के प्रमाण से भाजित करने पर इष्ट पर्वत आदि का व्यास प्राप्त होता है ।। ४५२ ।।
SR No.090512
Book TitleTriloksar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Siddhant Chakravarti, Ratanchand Jain, Chetanprakash Patni
PublisherLadmal Jain
Publication Year
Total Pages829
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size19 MB
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