SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 625
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ गाथा:७४३ निरतियंग्लोकाधिकार ५८१ देव । रेबकुछः पन सपन स्वस्तिककूट शासज्वालं ततः सोसोवा परिमं हरिकूट ततः सिडकूट गन्धमापनं ॥७४०॥ उत्तर । उत्तरकुरुः गम्पमालिनी ततो लोहितासं स्फटिक मन्ते मानन्दं ७ तेषां मध्ये सागररमतकूटयोः सुभोपाभोगमालिन्याख्ये व्यन्तरवेष्यो स्थिते ॥ ७४१ । विमल । विमलकाशनकूटयोः वरसमित्रासुमित्राख्ये ध्यन्तरदेण्यो स्तः, तपस्वस्तिककूटयो रिएबलास्ये पन्तादेष्यो स्तः, स्फटिकलोहितकूटयो गकरीमोगवत्याएये व्यस्तरदेव्यो स्तः ॥ ४२ ॥ गापा:-१ सिद्धक्ट, ९माल्यवान्, ३ उत्तर कौरव, ४ कच्छ, ५ सागर, ६ रजत, ७ पूर्णभद्र, ८ सोता और । हरिसहर्ट हैं। ये नौ कूट ऐशान दिशागत माल्यवान् गज दन्त पर नापार्थ :-- इसके बाद १ सिजकूट, २ सोमनस, ३ देव कुरु, ४ मङ्गल, ५ विमल, ६ काश्चन और अन्तिम ७ वशिष्ट नाम सात कुट दूसरे सौमनस गजदन्त पर्वत के अपर स्थित हैं। इसके बाद १ सिद्धकूट, २ विद्युत्प्रभ, ३ देव कुम, ४ पम, ५ तपन, ६ स्वस्तिककूट, ७ शतज्वाल, ८ सीतोदा और प्रन्तिम ६ हरिकूट, ये ६ कूट तीसरे विद्युतप्रभ गजवन्त के ऊपर अवस्थित है। इसके बाद । सिद्धकूट, २ गन्धमादन, ३ उत्तरकुरु, ४ गन्धमालिनी, ५ लोहिताश, ६ स्फटिक मोर अन्तिम ७ आनन्द ये सात कुट चौथे गन्धमादन गजदन्त के अपर अवस्थित है । इन उपर्युक्त कूटों में से सागर एवं रजतकूटों पर सुभोगा और भोगमालिनी व्यन्तर देवियां निवास करती हैं। विमल और काश्चन कुटों पर वत्समित्रा और सुमित्रा, तपन और स्वस्तिक कदों पर वारिषेणा और अबला तथा स्फटिक और लोहित कटों पर मोगरा और भोगवती नाम की व्यन्तर देवियां निवास करती हैं ॥७३८-७४२ ।। विशेषार्थ :- सुगम है। सिद्धं वक्खारक्खं हेतु बरिमदेसणामकूडदुगं । दुगणव पण सोलं दुगकला व वक्खारदीदत्तं ।। ७४३ ।। सिद्ध वक्षाराख्यं अधस्तनोपरिमदेशनामकटद्वयं । द्विनव पञ्च षोडश द्विककला च वक्षारदोघवम् ।। ७४३ ।। सिकं। इत उपरि वक्षारकूटानि, सिजकूट वक्षाराख्यं सर्ववक्षाराणामबस्तनोपरिमवेशनाम कच्छाच्छारिकूटमित्येतान्येव पत्वारि सर्ववक्षाराणा कूटनामानि भवन्ति । बलाराणा वयं तु दिनव पक्ष षोशयोजनानि एकोनविंशतिहिकलाविभानि भवन्ति । कथमेत ? 'चुलसीपिछतीसा पत्तारिफिलेति' गायोक्तविदेहविष्कम्मे ३३६८४ सोतासोतोक्योः विवक्षितनकोव्यास ५०० मपनीय ३३१८४ प्र!कते १६५६२ वक्षारवयमायाति ॥ ७४३ ॥
SR No.090512
Book TitleTriloksar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Siddhant Chakravarti, Ratanchand Jain, Chetanprakash Patni
PublisherLadmal Jain
Publication Year
Total Pages829
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size19 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy