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त्रिलोकसार
गाथा । ७२८-७२६-७३. पाचार्य :-१ सिद्ध २ रुक्मी ३ रम्यक ४ नारी ५ बुद्धि ६ रुप्यकला ७ हरण्यकूट और ८ मणिकाशन ये आठ कट हामी कुष्ठाचल के ऊपर है ।। ७२७ ॥ विशेषार्थ:-इनका सभी वर्णन महाहिमवन पर्वत पर स्थित कूटों के समान ही है।
सिद्धं सिहरि य हेरण्णं रसदेवी तदो य रसखा । लच्छी सुवण्ण रत्तवदी पंधवदीय कूडमदो || ७२८ ॥ एरावदमणिकंचणकूडं सिहरिम्हि सच्चसेलाणं । मृले सिहरेवि हये दहेवि वणसंडमेदस्स ।। ७२९ ।। गिरिदोहो जोपणदलवासो वेदी दुकोसतुंगजुदा । घणुपणसयवासा णगवणणदिदहपदिएमु समा ।।७३०।। सिद्ध शिखरी च हैरण्यं रसदेवी ततश्च रक्ताख्या। लक्ष्मीः सुवर्ण रक्तवती गन्धवती साटमतः ।। ५२८ !! ऐरावतमरिपकाननकूट शिखरे सर्वशैलानाम् । मूले शिखरेऽपि भवेत् ह्रदेऽपि बनखण्डमेतस्य ।। २६ ॥ गिरिदैध्य योजनदलव्यासं वेदी विक्रोशतुङ्गयुता।
धनुः पञ्चशतव्यासा नगवननदीह्रदप्रभृतिषु समाः ॥ ७३० ॥ सिद्ध छायामात्रमेवार्थः ।। ७२८ ।।
एरावध । ऐरावत मणिकाश्चनकूट ११ शिखरे पर्वते सर्वेषां शैलाना मूले शिमरेऽपि हवेऽपि धमक्ष भवेत् । एतस्य वनखण्डस्य ॥ ७२६ ॥
गिरि । गिरिवंध्यमेव वैज़ योजनार्धव्यासं तस्यदेवी तु पनुः पञ्चशतम्यासा कोशवयोङ्गयुत। स्यात् । सा देवी नगवननदोहनप्रभृतिषु सर्वत्र माना ।। ७३० ।
पाचार्ग :-१ सिद्धायतन २ शिखरी ३ हैरप्प ४ रसदेवी ५ रक्तानाम ६ लक्ष्मी ७ सुवर्ण ८ रक्तवती । गन्धवती १० ऐरावत ११ मणिकाश्चन, ये ११ कूट शिस्त्ररिन पर्वत पर स्थित हैं। सभी पर्वतों के मूल में, शिखर पर और ह्रदों के चारों ओर वन हैं। इन वनखण्डों की लम्बाई अपने अपने पर्वतों की लम्बाई प्रमाण है, तथा व्यास (चौड़ाई ) अधं योजन प्रमाण है। वन खण्डों की वेदी दो कोश ऊंची और ५. नुप चौड़ी है । पर्वत, वन नदी और ह्रद आदि सभी को वेदियों का प्रमाण समान है ।। ५२८, ७२९, ७३० ।।
विशेषार्थ:-शिखरिन् पर्वत स्थित उपर्युक्त ११ कूटों की ऊँचाई आदि का तथा उनमें निवास करने वाले व्यन्तर आदि देवों का वर्णन हिमयन शैल स्थित कटों के सदृश ही है। समस्त कुलाचलों