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गाथा : ७२५-७२६-७२७ नरतियालोकाधिकार
गामार्ग :-( महाहिमवन पर्वत पर ) १ सिद्धकूट २ महाहिमवन् । हेमवात ४ रोहिता सीट ६ इरिकाम्या या वयं ने कट हैं ।। ७२४ ।।
विशेषार्थ :-उपयुक्त आठ कटों में से सिद्ध कूट पर जिन भवन है । स्त्रीलिंगधारी कटौं पर (व्यन्तर ) देवांगनाएं और शेष कूटों पर व्यन्तर देवों का निवास है। इन सभी कटों की ऊँचाई ५० योजन, भून्यास ५० योजन और मुखल्यास २५ योजन है।
सिद्धं णिमहं च हरिवरिसं पुन्चविदेह हरिधिदीकूड । सीतोदा णाममदो अवरविदेहं च रुजगंतं ॥ ७२५ ।। सिद्ध निषधं च हरिवर्ष पूर्व विदेहं हरितिकूट ।
सीतोदा नाम अतः अपरवि देहं च रुचकान्तम् ।। ७२५ ।। सिहं । सिकं मिषधं च हरिवर्ष पूर्वविदेह हरिकूटं पतिकूट सोतोका नाम पतोऽपरविवेहं पानस हलकं ॥ ७२५ ॥
पापा:-१ सिद्धकूट, १ निषध, ३ हरिवर्ष, ४ पूर्वविदेह, ५ हरिकूट, ६ धृतिकूट, ७ सीतोदा कूट, ८ अपर विदेह कूट और अन्तिम चक कट निषष पर्वत पर हैं ।। ७२५ ।।
विशेषा:-जिनगृह और देवों के निवास आदि पूर्वोक्त प्रकार ही हैं किन्तु यहाँ के कूटों की ऊँचाई १०० योजन, भूव्यास १०० योजन और मुखव्यास ५० योजन है ।
सिद्धं णीलं पुव्वविदेहं सीदा य किचि णरकता। अपर विदेहं रम्मगमपदंसणमंतिम गीले ॥ ७२६ ।। सिद्ध नीलं पूर्व विदेह सीता च कीति: नरकान्ता।
अपरविदेहं रम्यक अपदर्शनं अन्तिमं नीले ॥ ७२६ ।। सिद्ध । छायामात्रमेवाः ॥.७२६ ।।
पापा:- सिद्ध २ नील ३ पूर्वविदेह ४ सीता ५ कीति ६ नरकान्ता ७ अपर विदेह रम्यक और अन्तिम १ अपदर्शन ये कूट नौल पर्वत के ऊपर हैं ।। ७२६ ॥ विशेषार्थ :-इनका सर्व विशेष वर्णन निषषपर्यतस्थित कूटों के समान ही है।
सिद्ध रुम्मी रम्मग णारी बुद्धी य रूप्पकूलक्खा । औरणं कूडमदो मणिकंचणमट्ठम होदि ।। ७२७ ।। सिद्ध रुक्मी रम्यक नारी बुद्धिश्च रूप्यकुलाया।
हरण्यं कूटमतो मणिकाश्चनमष्टमं भवति ॥ ७२७ ।। सियं । छायामात्रमेवार्षः ॥ ७२७ ॥