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________________ ५७३ गाथा : ७२५-७२६-७२७ नरतियालोकाधिकार गामार्ग :-( महाहिमवन पर्वत पर ) १ सिद्धकूट २ महाहिमवन् । हेमवात ४ रोहिता सीट ६ इरिकाम्या या वयं ने कट हैं ।। ७२४ ।। विशेषार्थ :-उपयुक्त आठ कटों में से सिद्ध कूट पर जिन भवन है । स्त्रीलिंगधारी कटौं पर (व्यन्तर ) देवांगनाएं और शेष कूटों पर व्यन्तर देवों का निवास है। इन सभी कटों की ऊँचाई ५० योजन, भून्यास ५० योजन और मुखल्यास २५ योजन है। सिद्धं णिमहं च हरिवरिसं पुन्चविदेह हरिधिदीकूड । सीतोदा णाममदो अवरविदेहं च रुजगंतं ॥ ७२५ ।। सिद्ध निषधं च हरिवर्ष पूर्व विदेहं हरितिकूट । सीतोदा नाम अतः अपरवि देहं च रुचकान्तम् ।। ७२५ ।। सिहं । सिकं मिषधं च हरिवर्ष पूर्वविदेह हरिकूटं पतिकूट सोतोका नाम पतोऽपरविवेहं पानस हलकं ॥ ७२५ ॥ पापा:-१ सिद्धकूट, १ निषध, ३ हरिवर्ष, ४ पूर्वविदेह, ५ हरिकूट, ६ धृतिकूट, ७ सीतोदा कूट, ८ अपर विदेह कूट और अन्तिम चक कट निषष पर्वत पर हैं ।। ७२५ ।। विशेषा:-जिनगृह और देवों के निवास आदि पूर्वोक्त प्रकार ही हैं किन्तु यहाँ के कूटों की ऊँचाई १०० योजन, भूव्यास १०० योजन और मुखव्यास ५० योजन है । सिद्धं णीलं पुव्वविदेहं सीदा य किचि णरकता। अपर विदेहं रम्मगमपदंसणमंतिम गीले ॥ ७२६ ।। सिद्ध नीलं पूर्व विदेह सीता च कीति: नरकान्ता। अपरविदेहं रम्यक अपदर्शनं अन्तिमं नीले ॥ ७२६ ।। सिद्ध । छायामात्रमेवाः ॥.७२६ ।। पापा:- सिद्ध २ नील ३ पूर्वविदेह ४ सीता ५ कीति ६ नरकान्ता ७ अपर विदेह रम्यक और अन्तिम १ अपदर्शन ये कूट नौल पर्वत के ऊपर हैं ।। ७२६ ॥ विशेषार्थ :-इनका सर्व विशेष वर्णन निषषपर्यतस्थित कूटों के समान ही है। सिद्ध रुम्मी रम्मग णारी बुद्धी य रूप्पकूलक्खा । औरणं कूडमदो मणिकंचणमट्ठम होदि ।। ७२७ ।। सिद्ध रुक्मी रम्यक नारी बुद्धिश्च रूप्यकुलाया। हरण्यं कूटमतो मणिकाश्चनमष्टमं भवति ॥ ७२७ ।। सियं । छायामात्रमेवार्षः ॥ ७२७ ॥
SR No.090512
Book TitleTriloksar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Siddhant Chakravarti, Ratanchand Jain, Chetanprakash Patni
PublisherLadmal Jain
Publication Year
Total Pages829
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size19 MB
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