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________________ ५७२ त्रिलोकसार गाथा: ॥१४ वृत्ताः सर्वे कूटा रत्नमया: स्यकनगस्य तुर्योदयाः। ताव विस्ताराः तदधंवदनाः हि सर्वत्र ।। ७२३ ॥ कमसी। कमशस्तेषां नामानि सिद्धायतनं हिमवान् भरतं इलाच गङ्गा न श्रीकूटं रोहितास्या सिन्धुः सुरा हेमवतकं वैषधरणं ॥ ७२१॥ __पढमे । तत्र प्रपमकूटे मिनेन्द्रगेहं यालिङ्गायकूटषु यसरया निवसन्ति । शेष तरफूटनामपन्तरवा निवसन्ति । ७२२ ॥ पट्ट।। ते सर्वे कूटा: दृत्ताः रस्ममयाः स्वकीय स्वकोयनमस्य चतुर्षाशोवया तापमात्रमूविस्ताराहतवर्षववनाः सर्वच खलु भवन्ति ॥ ७२३ ॥ उपयुक्त कूटों के नामादिक दश गाथाओं द्वारा कहते हैं : पापाय:-[ हिमवन कुलाचल के ऊपर स्थित ११ क्रूटों के नाम ] क्रम से १ सिद्धायतन, २ हिमवान्, ३ भरत, ४ इला, ५ गङ्गा, ६ श्रीकूट, रोहितास्या, ८ सिन्धु, ६ सुराकुट, १० हैमवतक, और वैश्रवण हैं। इनमें प्रथम कट पर जिनेन्द्र भवन, स्त्री लिङ्ग नामधारी फटों पर व्यन्तर देवियाँ और शेष कूटों पर कट नाम धारी व्यन्तर देव निवास करते हैं वे सर्व कट गोल और रत्नमय हैं। सर्व कटों की ऊँचाई अपने अपने पर्वतों की ऊँचाई का चतुर्थ भाग है। भू व्यास भी इतना ही है, तथा मुखव्यास भूव्यास का अर्घ प्रमाण है ।। ७२१.७२२, ७२३ ।। विशेषार्थ :-- क्रम से सिद्धायतन, हिमवान्, भरत, इला, गंगा, श्रीकूट, रोहितास्या, सिन्धु, सुरा, हैमवतक और वैश्रवण ये ११ कूट हिमवन् फुलाचल के ऊपर स्थित हैं । इनमें से प्रथम सिद्धायतन कूट के ऊपर जिन मन्दिर हैं, तथा स्त्रीलिंग नाम धारी इला, गंगा, श्रीकूट, रोहितास्या, सिन्धु पौर सुरा कटों पर व्यन्तर देवांगनाएं निवास करती है और मवशेष कूटों पर अपने अपने कूटनामधारी ध्यन्तर देव रहते हैं। वे सर्व कट रत्नमय और गोल आकार वाले हैं। इन कूटों की ऊंचाई अपने पर्वस की ऊंचाई के चौथाई भाग प्रमाण है, ऊँचाई प्रमाण सदृश ही भू व्यास और भू व्यास के अर्धभाग प्रमाण मुख व्यास है । हिमवन् पवंत १०० योजन ऊंचा है, अतः कूटों को ऊँचाई {१° = २५ योजन, जमीन पर चौड़ाई २५ योजन भौर ऊपर की चौड़ाई १२० योजन प्रमाण है। तो सिद्ध महाहिमचं हेमबदं रोहिदा हिरीकूडं । हरिकंता हरिवरिसं वेलुरियं पच्छिमं कूडं ॥ ७२४ ।। ततः सिद्ध महाहिमवान हैमवत्तं रोहिता ही। हरिकान्ता हरिवषं वडूयं पश्चिम कुट ।। ७२४ ॥ तो । पश्चिम परमं इस्पषः। छायामात्रमेवाः॥७४ ।।
SR No.090512
Book TitleTriloksar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Siddhant Chakravarti, Ratanchand Jain, Chetanprakash Patni
PublisherLadmal Jain
Publication Year
Total Pages829
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size19 MB
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