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________________ गाया : ७९० से ७२३ नरतियं ग्लोकाधिकार ककारस हिमादिकूलानि । एक्कारसङ्कणवणव बेयड्डाणं णवणव पृन्त्रगकूल म्हि जिणभवणं || ७२० ।। एकादशाष्ट नव नव अष्टेकादश हिमादिकूटानि । विजयानि नव नव पूर्वगकूदे बिनभवनानि ॥ ७२० ॥ एक्काएका ११८ नव नष्ट ८ एकादश ११ प्रमितानि ययासंख्यं हिमवदादिकूटानि । तत्र पूर्व विग्गतकूटे मिनभवनामि कुलपत६परिस्थितकूटानि विजयार्थाना तुपरि भवन सन्ति ।। ७२० ॥ २०१ अब हिमवन् यदि कुलाचल और विजयार्थी के ऊपर स्थित कूटों की संख्यादि कहते हैंगाथार्थ :- हिमवदादि पर्वतों पर क्रमशः ग्यारह, तथा विजयार्थ पर्वतों के ऊपर तो नो कूट है। है ।। ७२० ।। पूर्व १ कूलादि ( ब०, प० ) । आठ, नो, नो, आठ और ग्यारह फूट हैं दिशा सम्बन्धी कूटों पर जिनभवन I विशेषार्थ :- हिमवन् पर्वत के ऊपर ११, महाहिमवत् पर, निषध पर है, नीच कुलाचल पर ९, रुक्मी कुलाचल पर और शिखरि कुलाचल पर ११ कूट अवस्थित हैं । प्रत्येक विजयापर्यंत पर ९, ९ कूट हैं। ये कूट पर्वतों के ऊपर और गोल माकार के होते हैं। ये नीचे बहुत चौड़े मोर उपरिम भाग में कम चौड़े होते हैं। पूर्व दिशागत सिद्धायतन नामा कूटों के ऊपर जिन मन्दिर है । अथ उक्तकूटानां नामादिकं गाथादशकेन निगदति कमसो सिद्धायदणं हिमचं भरहं इला य गंगा य । सिरिंकूडरोहिस्सा सिंधु सुरा हेमवदय बेसवणं ।। ७२१ ।। पढमे बिदि गेहं देवीओ जुवदिणामकूडे | सेसेसु कूडणामा वैतरदेवावि णिवति ।। ७२२ ॥ बट्टा सच्वे कूड़ा रयणमया सगणगस्स तुरियुदया | तचियभूवित्थारा तदद्भवदणा हु सम्वत्थ || ७२३ ।। क्रमशः सिद्धायतनं हिमवान् भरतं छला च गङ्गा च । श्री कूटं रोहितास्या सिन्धुः सुरा हैमवतके वैश्रवणं ॥ ७२१ ॥ प्रथमे जिनेन्द्र गेहूं देव्यो युवतिनामकूटेषु । शेषेषु कूटनामाना व्यन्तरदेवा अपि निवसन्ति ।। ७२२ ॥
SR No.090512
Book TitleTriloksar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Siddhant Chakravarti, Ratanchand Jain, Chetanprakash Patni
PublisherLadmal Jain
Publication Year
Total Pages829
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size19 MB
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