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त्रिलोकसार
गाथा : ७१६ पिर। स्थिरभोगावनिमध्ये वृत्ता: सहलोत्सेया। मूलोपरि तावन्मात्र १०.. सन्द्रा विशतिनाभिगिरयः सन्ति ॥ ७१८ ॥
अब नाभिगिरि । पर्वतों) के अवस्थान का स्थान और उनका उत्सेधादि दो गाथाओं द्वारा कहते हैं :
___ गाथा:-स्थिर भोगभूमियों के मध्य में मोलाकार, एक हजार ऊंचे तथा मूल में और ऊपर इतने ( १... योजन ) ही चौड़े बोस नाभिगिरि हैं ।। ७१८ ॥
विशेषाप:-एक मेह सम्बन्धी हैमवत, हरि, रम्यक और हरण्यवत क्षेत्रों में चार स्थिर भोग भ्रमिया हैं, अतः पांच मेरु सम्बन्धी २० स्थिर भोग-भूमिया हई। इन प्रत्येक क्षेत्रों के ठीक मध्य भाग में गोलाकार एक एक. नाभिपर्वत है जिसकी ऊंचाई १.०० योजन, तल भाग की चौड़ाई १००० योजन मोर जपरिम भाग को भी चौड़ाई १०.० योजन है। इस प्रकार खड़े स्तम्भ के आकार वाले पांच मेरु सम्बन्धी २. नाभिगिरि हैं।
सहावं विजडावं पउमगंधवण्णाम सुक्किला सिहरे । सस्कदुगणुचर सादीचारणपउपप्पहास पाणसुरा।। ७१९ ।। श्रद्धावान् विजटावान पद्मगन्धवन्नामानि शुक्ला: शिखरे ।
शकटिकानुचराः स्वातिचारणपद्मप्रभासाः वानसुराः ।। ७१६ ॥ सजवावं । श्रद्धावान् विघटावान पपवान् गषवान इत्येतान्येव प्रत्येक पन्धमभारसम्बन्धिमा चतुर नाभिगिरोणां नामानि । ते च शुक्लवणाः, तेषां शिखरेषु सौषर्मशानयोरनुचराः स्वातिधारणपम्पप्रभावास्यव्यन्तरदेवा निवसन्ति ।। ७१६ ॥
गाथार्ष:- उपर्युक्त नाभिगिरि श्रद्धावान्, विजटावान्, पद्मवान और गन्धवान नाम वाले तथा वेत वणं हैं। इनके शिखरों पर सौधर्मशान इन्द्रों के अनुचर स्वाति, चारण, पद्म और प्रभास नाम के व्यन्तर देव रहते हैं ।। ७१६ ।।
विशेषापं:-हैमवत क्षेत्र के ठीक मध्य भाग में श्रद्धावान्, हरिक्षेत्र के मध्य विमटानान्, रम्यक क्षेत्र के मध्य पद्मवान् और हरण्यवत क्षेत्र के मध्य गन्धवान् श्वेत वर्ण नाभिगिरि हैं । इनके विखरों पर सौधर्मशान इन्द्रों के अनुचर स्वातिचारण, पद्म और प्रभाप्त नाम के व्यन्तर देव रहते हैं। पांचों मेख सम्बन्धी २० नाभि पर्वतो के नामादिक यही हैं ।
इदानी हिमवदादिलगिरीणां विजयाणां चौपरिस्थितवाटानां संख्यादिकमाचष्टे