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गाथा : १५-७१७-१८
नरतिर्यग्लोकाधिकार अथ तेषां नगराणां विशेषस्वरूपं गाथाद्वयेनाह--
रथणकवाडवरावर सहस्सदलदार हेमपायारा । वारसहस्सा वीही तत्थ चउप्पह सहस्सेक्कं ॥ ७१६ ।। णयराण बहिं परिदो वणाणि तिसदं ससहि पुरमज्झे । जिणमवणा णरवाजणगेहा सोहंति रयणमया ॥ ७१७ ।। रत्न कपाटवरावरा सहस्रदलद्वारा हेमप्राकाराः। द्वादशसहस्राणि वीय्य: तत्र चतुष्पथानि सहस्रकम् ।।१६।। नगगणां पहिलवान सष्टिा पुरमध्ये ।
जिनभवनानि नरपतिजनगेहानि शोभन्ते रत्नमयानि ॥ ७१७ ॥ रयण। तेषो मगराणा रलमयकवाटा उत्कृष्ठसहस्रद्वारा: अधयतद्दल ५०० बारा: हेममपप्राकारा भवन्ति । तबभ्यन्तरे द्वादशसहस्राणि पोप्यः तत्रैकसहस्र चतुष्पपानि स्युः ॥१६
एयराण । नगराणा बहिः परितः बहिसमन्वित्रिशतं ३६० बनानि सन्ति । पुरमध्ये जिनभवनानि नरपतिगृहारिण जनगृहाणि रश्नमयानि शोभन्ते ॥ ७१७ ॥
अब उन नगरों का विशेष स्वरूप दो गाथामों द्वारा कहते हैं :
गापाय :-उन नगरों के एक हजार उत्कृष्ट द्वार और पांच सौ जघन्य द्वार हैं । जिनके कपाट रत्नमय हैं। जिनका प्राकार स्वर्णमय है। जिनमें बारह हजार वीथियां (गलियाँ ) और एक हजाय चतुष्पच हैं। नगरों के बाहर चारों ओर ३६० वन (बाग ) हैं, तथा नगर के मध्य में रत्नमय जिन भवन, राजभवन एवं अन्य मनुष्यों के भी भवन शोभायमान होते हैं ॥ ७१६, ४१७॥
विशेषार्थ :--उन नगरों के प्राकार ( कोट ) स्वर्णमय हैं। उनमें १.०० उत्कृष्ट ( बड़े ) द्वार और ५.. जघन्य ( छोटे ) द्वार हैं, जिनके कपाट रत्नमय है उन नगरों में १२००० अभ्यन्तर वीथियाँ और१... चतुष्पय हैं। नगरों के बाहर चारों ओर ३६० वन ( बाग ) हैं, तथा नगर के मध्य में रत्नमय जिनभवन, राजभवन एवं अन्य जन ( अन्य मनुष्यों के ) भवन शोभायमान होते हैं । इदानीं नाभिगिरीणामवस्थितस्थानं तदुत्सेधादिकं च गाथाद्वयेनाह
घिरमोगावणिपज्मे नामिगिरीमो हवंति वीसाणि । वट्टा सहस्सतुंगा मूलुवरि तचिया रुंदा ।। ७१८ ॥ स्थिरभोगावनिमध्ये नाभिगिरयः भवन्ति विशतिः । वृत्ताः सहस्रतुङ्गा मूलोपरि तावन्तः रुन्द्राः ॥ ७१०।।
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