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________________ १७ गाथा : ७११ नरतियालोकाधिकार सातशत वृवापर: मध्यगलमय खरबजय। करकणिकाञ्चनोपयति भृता गतवक्रिनामभिः ॥ ७१०। सप्तरि। मकवर्णा मणिमयाः काञ्चनपर्वतोवय १. भू १.० मुल ५. भ्यासा: गतकिरण नामभिमृताः सप्तायुत्तरं शतं १७. पवमगिरयः मध्यगतम्लेच्छसण्यामध्ये सिga || uton विजयाचं द्वारा किए हुए छह खण्डों में से मदेच्छ खण्क्ष के मध्य स्थित वृषभाचल के स्वरूप का निरूपण करते हैं: पाया:-मध्यगत मेच्छ खण के ठीक मध्य भाग में स्वर्ण वर्ण वाले मणिमय वृषभाचल पर्वत हैं। ये प्रत्येक देश में एक एक हैं, अतः इनकी कुल संख्या १७० है । इनके उदय आदि तीनों प्रमाण कावन पर्वत सदृश हैं। ये पर्वत अतीत कालीन चक्रवर्ती राजाओं के नामों से भरे हुए है ।। ७१० ॥ विशेषा:-विजया पर्वत और गङ्गा सिन्धु नदियों के द्वारा किए हुए खण्डों में जो मध्य का म्लेच्छ खण्ड है, उसके ठीक मध्य में काश्चन पर्वतों के सदृश १०० योजन ऊँचे, भूमि पर १.. योजन चौड़े और शिखर पर ५० योजन चौड़े, स्वगं वर्ण वाले मणिमय १७० वृषभाचल हैं। छह खण्डों पर विजय प्रा8 कर जो चकवी होते हैं, वे इन पर्वतों पर अपना नाम लिखते हैं। मतीत काल में होने वाले चक्रवर्ती राजाओं के नामों से ये पर्वत भरे हुए हैं। अथ तथार्यखण्डमध्यस्थितराजधान्मा म्यासायामो कथयति सहरिसपणयगणि य उपजलधिगजखंडमज्झम्हि । चक्कीण णत्रय बारस वासायामेण होति कमे || ७११ ॥ सतिशननगराणि च उपजलधिगायबण्डमध्ये । चकिया नव द्वादश ध्यासायामाभ्यां भवन्ति क्रमेण ।।७१५॥ सत्सर । उपनलषिगतार्यखणामध्ये यातायामाम्यां कमेण नव वाश १२ पोजनानि सप्तत्युत्तरशतं पकिरणा नगराणि भवन्ति ॥११॥ आयखमों के मध्यस्थित राजधानियों का व्यास और आयाम कहते हैं गाणार्थ :- उपसमुद्रगत आर्यखण्ड के मध्य में चक्रवर्ती के निवास योग्य र योजन चौड़ी और १२ योजन लम्बी १५० क्षेत्रों से सम्बन्धित १७० मुख्य राजधानियां हैं। अथ तेषां नामानि पाथाचतुष्टयेनाह
SR No.090512
Book TitleTriloksar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Siddhant Chakravarti, Ratanchand Jain, Chetanprakash Patni
PublisherLadmal Jain
Publication Year
Total Pages829
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size19 MB
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