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त्रिलोकसार
पाया:७०६-७१.
२२ सुरेन्द्रकान्त, २३ गगननन्दन, २४ अशोका, २५ विशोका, २६ वीतशोका, २७ अलका, २८ तिल का, २९ अम्बरतिलका, ३० मन्दर, ३१ कुमुद, ३२ कुन्द, ३. गगनवलभ, ३४ दिव्यतिलक, ३५ भूमितिलक, ३६ गन्धर्व नगर, ३७ मुक्ताहार, ३८ नैमिष, ३६ अग्निज्वाल, ४० महाज्वाल, ४१ श्रीनिकेतपुर, ४२ जयावह, ४३ श्रीवास, ४ मरिणवन, ४५ भद्राश्वपुर, ४६ धन सय, ४७ गोक्षीरफेन, ४८ प्रक्षोभ, ४९ गिरिशिखर, ५. घरणिपुर, ५१ धारणीपुर, ५२ दुर्ग, ५३ दुर्धर नगर, ५४ सुदर्शन, ५५ महेन्द्रपुर, ५६ विजयपुर, ५७ सुगन्धिनी नगरी, ५८ बच्चाधंतर, ५ रत्नाकर और अन्तिम १. रलपुर नाम का नगर है । ये सभी नगरियाँ रत्नमयो राजधानियां हैं । अर्थात् राजामों के निवास स्थान पाही नगरों में हैं ।। ६९६ से ७०८।।
पायारगोउरलचरियासरवण विराजिया तत्थ । विजाहरा तिविजा वसंति छक्कम्मसंजुत्ता ।। ७.९ ॥ प्राकारगोपुराट्टालचसिरोवनः विराजिता तत्र ।
विद्याधरा त्रिविद्या वसात षट्कर्मसंयुक्ता ॥ 06 पायार। ताश्च पुनः प्राकारगोपुराट्टालकवर्यासरोवविराजिताः। सत्र साषितकुलजातिविद्याभिः त्रिविद्याः षट्कर्मसंयुक्ताः इज्या भसिमच्याविजीवनोपायव्यापारो पाता पत्तिय स्वाध्यायः संयमस्तपः इत्येतानि षट्कर्माणि एतर्युक्ता विद्यापरा बसन्ति ॥ ७०६ ॥
पापार्ष:-वे समस्त नगरियर्या कोट, दरवाजे, मन्दिर मार्ग, सरोवर और वनों से सुशोभित हैं। वहाँ पर सोन प्रकार की विद्याओं बोर षट्कम संयुक्त विद्याधर निवास करते हैं।। ७० ॥
विशेषार्ष:-भरतरायत क्षेत्र स्थित विजयाध की दक्षिणोत्तर दोनों बेणियों की ११० नगरिया प्राकार, गोपुर ( दरवाजा ), मन्दिर मार्ग: सरोवर और वनों से सुशोभित हैं। वहाँ रहने वाले विद्याधर स्वयं साधना से प्राम, पितृपक्ष ( कुल कम } से प्राप्त बोर मातृपक्ष ( जाति ) से प्राप्त त्रिविद्याओं एवं इज्या, चाता, दत्ति, स्वाध्याय, संयम और तप इन षट्कर्मों से संयुक्त हैं।
१. पूज्य पुरुषों को पूजना इज्या कहलाती है। २. असि, मसि पादि जीविका के उपाय रूप व्यापार को वार्ता कहते हैं। ३. स्वपरोपकारार्थ दान देने का नाम दत्ति है। ४. पठन पाठन को स्वाध्याय कहते हैं। ५. अविरतिरयाग का नाम संयम और रत्नत्रय का आविर्भाव करने के लिए इच्छा का निरोध करना तप है। अथ विजयाघकृतषट् खण्डस्थम्लेच्छखहमध्यस्थितवृषभाद्रीणां स्वरूप निरूपयति
सचरिसयवसहगिरी मझगयमिलेच्छखंडबहुमज्के । कणयमणिकंचणुदयति मरिया गयचक्किणामहि ॥७१।।