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________________ ५६२ त्रिलोकसाथ गाथा : ६९५ से ६९८ सोहम्म । तव द्वितीयायां घेण्यां सौधर्मसम्बन्ध्यासियोग्यानां मणिमयानि विचित्रपुराणि सन्ति । तस्य विवरतले पूर्णमद्रारूपे फूटे विजयाषंकुमारपतिरहित || ६१४ || अब वहाँ ही द्वितीयादि श्रेणी पर विशेष कहते हैं गाथाचं :- द्वितीय श्र ेणी पर सोधर्म सम्बन्धी अभियोग्य देवों के नाना प्रकार के मणिमम नगर हैं तथा शिखर के नीचे पूर्णभद्र नाम कूट पर विजयार्धकुमारपति ( देव ) रहता है || ६६४ ॥ अथ तत्र प्रथम ण्योः स्थितविद्याधरनगराणां संख्यां तनामानि च पञ्चदशभिगामिराहपणदणं पणदणं विदेहवेय पदमभूमिहि । णयराणि पष्ण सट्टी जंबूद्धभयं तदेय ।। ६९५ ।। पञ्चपञ्चाशत् पद्मपखाशत् विदेविज बाघ प्रथमभूमी | नगराणि पञ्चाशत् षष्टिः जम्भयान्तविजयार्थे ॥ ६९५ ।। पर। विदेहविक्रयाप्रयमो भय श्रेण्योः प्रत्येकं यथासंख्यं पञ्चाधिकपचाशत् ५५ पश्चाचिकपञ्चाशत् ५५ नगराणि सन्ति । जम्बूद्वीपो भवान्सभरत रावतस्यविजयार्थे प्रथमो भयौ च पवा ५० षष्टि ६० नगराणि सन्ति ॥ ६६५ ॥ अब वह प्रथम ( दक्षिणोत्तर दोनों ) श्र ेणी पर स्थित विद्याधरों के नगरों की संख्या और उनके नाम पन्द्रह गाथाओं द्वारा कहते हैं गाथायें :- विदेह स्थित विजयार्थ की प्रथम अर्थात् दक्षिण मोर उत्तर श्र ेणी पर पचपन, पचपन नगर हैं, तथा जम्बूद्वीप के दोनों अन्त स्थित भरतेरावत सम्बन्धी विजयाधों को दक्षिणोत्तर श्रेणियों पर ५० र ६० नगर हैं ।। ३६५ ।। विशेषा:--- विदेह स्थित विजयार्थ पर्वत की प्रथम कटनी गठ दक्षिण और उत्तर इन दोनों श्र ेणियों पर यथाक्रम ५४ ५५ नगर हैं, तथा जम्बूद्वीप के दोनों अन्तिम भागों पर स्थित भरतेरावत सम्बन्धी विजयावं की प्रथम कटनी गत दक्षिणोत्तर दोनों में शियों पर ५० रु ६० नगर हैं । सेलायामे दक्खिणसेटीए पण्णमुचरे सट्टी | तृष्णामा पुत्रादी किंणामिद किंणरगीदं ।। ६९६ ।। रमीदं बहुकेद्र पुंडरियं सीहसेदगरुडधजं । सिरिपइधर लोहम्माल मरिजयं नामग्गलड्डूपुरं ||६६७ ।। होइ विमोह पुरंजय सयडचदुग्बहुमुही य भरजखा । विरजक्खा रहस्णूपुर मेइलअग्गपुर खेमचरी ।। ६९८ ।।
SR No.090512
Book TitleTriloksar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Siddhant Chakravarti, Ratanchand Jain, Chetanprakash Patni
PublisherLadmal Jain
Publication Year
Total Pages829
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size19 MB
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