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________________ पापा : मरतिश्लोकाधिकार रशयोमनग्यासः । तत्र प्रयमो प्रयतटगतपयो नबरा निवसन्ति, वितीयायामाभियोग्या शिखरे तु सिवारिनबटानि संति ॥ ६९ ॥ पापाई :-उन विजया पर्वतों को दश योगन, दश योजन और पांच योजन की ऊंचाई तक क्रमशः पचास योजन, तीस योजन और दश पोजन भ्यास-चौड़ाई है। इसकी प्रथम श्रेणी पर विद्याधर, द्वितीय श्रेणी पर आभियोग्य जाति के देव रहते हैं। तथा शिखर पर सिवायतन आदि कूट है ॥ ६६३ ।। विशेषा:-उन विजयाचं पर्वतों की कुल ऊंचाई २५ योजन है जिसमें नीचे से दश योजन की ऊंचाई पर्यन्त ५० योजन चौड़ा है। इसके ऊपर दक्षिणोत्तर दिशा में दश दश योजन को कटनी को छोड़ बीच में दश योजन की ऊँचाई तक तीस योजन चौड़ा है। पुनः दक्षिणोत्तर दिशा में वश-दण योजन की कदनी छोड़ कर पांच योजन की ऊंचाई तक दश योजन चौड़ा है। दक्षिणोत्सर दोनों तटों को प्रथम श्रेणी पर विद्याधर और द्वितीय घणी स्वरूप कटनी पर आभियोग्य जाति के देव निवास करते है, तथा शिखर पर सिद्धायतन आदि नव कूट है। जिसका चित्रण निम्न प्रकार है विजमार्च पर्वत पा LifhidithimuT - TITI अथ तव द्वितीयादिश्रेणी विशेषमाइ सोहम्मआमिजोम्गगमणिचितपुराणि विदियसेदिम्हि । धेयकमारवई सिहरतले पुण्णमदक्खे ॥ ६९४ ।। सौधर्माभियोग्यगमणिचित्रपुराणि द्वितीय श्याम् । विजपाकुमारपतिः शिखरतले पूर्णभद्राक्ष्ये ॥ ६९४ ।।
SR No.090512
Book TitleTriloksar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Siddhant Chakravarti, Ratanchand Jain, Chetanprakash Patni
PublisherLadmal Jain
Publication Year
Total Pages829
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size19 MB
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