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त्रिलोकसार
गापा:९२-९३
अय तत्रस्थविजयार्धानां नदीनां च विन्यासादिकं गाथाद्वयेनाह -
ते पुश्वावरदीहा जणवषमज्मे गुइन्दु पुथ्वं वा । गंगादु णीलमूलगकुंदा रचदुग णिसहणिस्सरिदा ॥६९२।। ते पूत्रपिरदीर्घा जनपदमध्ये गुहाइयं पूर्व वा।
गङ्गाद्वयं नीलमूलगकुण्डा रक्ताद्विकं निषनिःमृताः ।।६९२॥ ते। विजयार्धाः पूर्वापरदीर्घा जनपबमध्ये सन्ति । तयस्थगुहावयं तु भरतविजयार्योक्तवर ज्ञातव्यं । गंगासिन्धू ने नोलपवंतमूलस्थितकुएशानिर्गत्य सोतासोतोक्योः प्रविष्ट । रक्तारको है निषषपर्वतमूलस्थितकुण्डानि सस्य सीतासोतोक्योः प्रविष्टे ॥ ६९२ ॥
वहाँ स्थित विजयाचं पोर नदियों के व्यास आदि को दो गाथाओं द्वारा कहते हैं
मायार्थ :-वे विजयाचं पर्वत जनपद-येश के टोक मध्य में पूर्व पश्चिम लम्बे हैं, तथा उनमें पूर्व (भरत स्थित विजयाचं ) के सदृश दो दो गुफाएँ हैं। नोल कुलाचल के निकट मूल में स्थित कुण्ड से गंगा सिन्धु और निषष कुलाचल के मूल में स्थित कुण्ड से रक्ता रक्तोदा ये दो दो नदियाँ ( प्रत्येक देश में निकली हैं ।। ६९२॥
विशेषार्थ :-वे विजयाचं पर्वत पूर्व पश्चिम लम्बे और जनपद प्रत्येक देशों के ठोक मध्य भाग में स्थित हैं । भरतक्षेत्र स्थित विजयाधं में से दो गुफाएँ कही थीं, वैसी ही दो दो गुफाएँ यहाँ पर जानना चाहिए। प्रत्येक देश में दो दो नदियाँ हैं । सीता और सीतोदा के दक्षिण तट स्थित जो १६ देश है उनमें गंगा सिन्धु नाम की दो दो नदियाँ हैं, और सोता-सोतोदा के उत्तर तट स्थित जो १६ देश हैं, उनमें से प्रत्येक देश में रक्ता रक्तोदा नाम की दो दो नदियां हैं। मंगा-सिन्धु ये दोनों नदियाँ नील कुलाचल के मूल में स्थित कुण्ड के उत्तर द्वार से निकल कर सीधी जाती हुई विजया की गुफा से होती हुई सौता-सीतोदा की वेदी के तोरण द्वारों में से होती हुई सोता-सीतोदा में प्रवेश करती है तथा रक्ता-उक्तोदा ये दोनों नदियाँ निषध कुलाचल के मूल स्थित कुण्ड के दक्षिरण द्वारों से निकल सीधी जाती हई विजयाचं की गुफा में प्रवेश करती हैं । वहां से निकल कर महानदियों (सीता-सोतोदा) की वेदी के तोरण द्वारों से होती हुई सीता सीतोदा में प्रवेश करती हैं।
दसदसपणोति पण्णं तीसं दमयं च रूप्पगिरिवासा। खपरामिजोग सेढी सिहरे सिद्धादिलं तु ।। ६९३ ।। दश दश पञ्चान्न पञ्चाशत् त्रिशत् दश च रूप्यगिरिम्यासा।
खचराभियोग्या अंगी शिखरे सिद्धादिकूटं तु ॥ ६९३ ॥ वस । तस्य विषयास्य श योजनोत्सेधा प्रथमा श्रेणी पश्चाशयोजनसमध्यासा| तत उपरि बशयोजनोसेषा द्वितीया रिणस्विशायोजनसमयासा, तास उपरि पव्रयोजनोसेघ उपरिमशिखरो