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गाथा : ६८६ से ६९०
नरतियग्लोकाधिकार विशेषार्थ:-अन्य राजा आदि मपनी अपनी पदवी पर स्थित है। वही सेना का अधिनायक सेनापति, ज्योतिपशों का अधिनायक गणिक पति, व्यापारियों का अधिनापक वणिकपति, समस्त सेना का नायक दण्डपति, पञ्चाङ्ग मन्त्र में प्रवीण मन्त्री, कुल में जो बड़ा है ऐसा महत्तर, कोटवाल, क्षत्रिय आदि चार वर्ण, चतुरंग सेना, पुरोहित, देश का अधिकारी अमात्य और सर्व राज्य कार्य का अधिकारी महामात्य ऐसी मठारद श्रेणियों का जो स्वामी होता है उसे राजा कहते हैं। यही मुकुटधारी होता है। इसी प्रकार के मुकुटधारी ५०० राजाओं के स्वामी को अधिराजा १०००, राजाओं के स्वामी को महाराजा, २... राजाओं के स्वामी को गह, Yo०० राजाओं के स्वामी को मण्डलीक, ८.०. राजाओं के स्वामी को महामण्डलीक, १६... राजाओं के स्वामी को त्रिखण्डाधिपति ( अधं चक्रवर्ती-नागया और प्रतिनारायण । तथा ३२०० मुकुटबद्ध राजाओं के अधिप को चक्रवर्ती कहते हैं। इदानीं तीर्थकृतो विशेषस्वरूपमाइ
सयलभुवणेक्कणाहो तित्थयरो कोमुदीप कुंदं वा । धवलेहि चामरेहिं च सद्विहि विजमाणो सो ।। ६८६ ।। सकलभुवनैकनाथः तीर्थ करः कोमुदीव कुन्दं वा।।
धवल चामरैः चतुःषष्टिभिः वीज्यमानः सः ।। ६८६ ॥ सयत । पसालभुवनेकनापः कोपुदीव कुन्दमिव बहिसंस्पर्धवलचामराज्यमानः स तीरी भातम्यः ॥ ६८६॥
अब तीर्थयों का विशेष स्वरूप काहते है--
पाया:-जो सकललोक का एक अद्वितीय नाथ है तया चांदनी एवं कुन्द के पुष्प सदृश चौंसठ चमरों से जो वीज्यमान है, वह तीर्थ कार है ।। ६८६ ।। अथ विदेहविजयाना' नामानि याथाचतुष्टये नाह--
कच्छा सुकरुछा महाकच्छा चउत्थी कच्छकावदी । मावत्ता लांगलावना पोक्खला पोक्खलावदी ।। ६८७॥ बच्छा सुवच्छा महावच्छा चउत्थी पच्छकावदी। रम्मा सुरम्मगा चेव रमणज्जा मंगलाषदी ।। ६८८ ॥ पम्मा सुपम्मा महापम्मा चउत्थी पम्मकावदी । संखा च गलिणी चेव कुमुदा सरिदा तहा ॥ ६८९ ॥ पप्पा सुवप्पा महावप्पा चउत्थी वप्पकावदी। गंधा खलु सुगंधा च गंधिला गंधमालिणी ॥ ६९० ॥ कच्छा सुकच्छा महाकच्छा चतुर्थी कच्छकावती।
आवा लागलावा पुष्कला पुष्कलावती ॥ ६८७ ॥ . विजयानां देशाना (२.टि.)।