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त्रिलोकसार
पापा १ वत्सा सुबत्सा महावत्सा चतुर्थी वत्सकावती । रम्या सुरम्यका चैव रमणीया मलावती ॥ ६८८ ॥ पद्मा सुपना महापद्मा चतुर्थी पद्मकावती। शङ्खा च मलिनी चैव कुमुदा सरित्तथा ॥ १६ ॥ वप्रा सुवप्रा महावमा चतुर्थी वप्रकावती।
गन्धा खल सगन्धा च गन्धिला गन्धमालिनी ।। ६१०।। कच्छा । बच्छा । पम्मा । षप्पा । छायामानमेवार्थः ।। १८७-६९० ॥ चार गाथाओं द्वारा विदेह देशों के नाम कहते हैं
गायार्थ :-१ कच्छा, २ सुकच्छा, ३ महाकच्छा, ४ कच्छकावती, ५ बावा, ६ लाङ्गलावा, ७ पुष्कला और = पुष्कलावती ये आठ देश सीता नदी के उत्तर तर पर मद्रशाल की वेदी से आगे क्रम पूर्वक हैं। १ वरसा, २ सुवासा, ३ महावत्सा, ४ वत्सकावती, ५ रम्या, ६ सुरम्यक, ७ रमणीया और ८ मंगलावती ये आठ देश क्रम से सीता महानदी के दक्षिण तट पर देवारण्य बेदी के आगे म पूर्वक है। १ पद्या, २ सुपद्मा, ३ महापद्मा, ४ पद्मकावती, ५ शङ्खा, ६ नलिनी, ७ कुमुद और ८ सरित ये पाठ देश सीतोदा नदी के दक्षिण तट पर भद्रशाल की वेदी से आगे क्रम पूर्वक हैं। १ वा, २ सुवप्रा, ३ महायता, ४ वप्रकावती, ५ गन्धा, ६ सुगन्धा, ७ गन्धिला, ८ गन्धमालिनी, ये माठ देश सीतोदा नदी के उत्तर तट पर देवारण्य को वेदी से आगे यथाकम अवस्थित है ॥ ६८७.-६ ॥ अथ एतेषु देशेषु वण्डानि कथं जानीयादित्युक्त प्राह
विजयं पडिवेयड्डो गंगासिंधुसमदोपिणदोण्णि गई । तेहि कया छक्खंडा विदेह बचीस विजयाण ॥ ६९१ ।। विजयं प्रति विजयायः गंगासिन्युसमे दे नथी।
तेः कृतानि षट् खण्डानि विदेहे द्वात्रिंशत् विजयानाम् ।। ६९१ ।। विजय । वेशं प्रति देश प्रति एकको विजया!ऽस्ति विजयोवेशो मर्षीकृतोऽस्मारिति विजया इत्यापिकरवात् । लव गङ्गासिन्धुसमाने ते मधौ सतः । तनविषयाः विदेहस्थद्वात्रिशकाना प्रत्येक षटखण्णानि कृतानि ॥ ६॥
इन देशों में खण्ड कैसे जाने ? ऐसा प्रश्न होने पर कहते हैं
गाथा:-प्रत्येक विदेह देश में एक एक विजमा पर्वत और गंगा सिन्धु के सदृश दो दो नदिया है । इन विजया और दो दो नदियों ने बत्तीस विदेह देशों के छह छह खण्ड किए हैं ॥ ६११॥
विशेषार्ष:-३२ विदेह देश हैं। प्रत्येक देश में एक एक विजया पर्वत हैं। ये विजय अर्थात् देश को आधा करते हैं, इसलिए विजयाचं इन का ये सार्थक नाम है। कुलाचलों से महानदी पर्यन्त देशों की जो लम्बाई है, उसके ठोक मध्य प्रदेश में विजयाचं पर्वतों की अवस्थिति है। इन्हीं प्रत्येक देशों में गंगा सिन्धु सदृश दो दो नदियाँ हैं। सो निर्गम स्थान पर ६३ योजन और प्रवेश स्थान पर ६२३ योजन चौड़ी हैं इन दो दो नदियों और एक एक विज या पर्वतों ने विदेह स्थित ३२ देशों में से प्रत्येक के छह छह लण्ड किए हैं । जिनका चित्रण निम्न प्रकार है