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पाया : १२
बरतिय लोकाधिकार विशेषापं :-एक मेरु सम्बन्धी ३२ विदेह देश हैं, अतः ५ मेरु पर्वत सम्बन्धी कुछ विदेह देश १६. हुए । प्रत्येक विदेह देश में यदि पृथक् पृथक् एक एक सीधंङ्कर, चक्रवर्ती और अर्धचक्रवर्ती प्रर्याद नारायण ओष प्रतिनारायण हों तो उत्कृष्टतः १६. हो सकते हैं।
एक मेरु सम्बन्धी पूर्व अपर दो विदेह क्षेत्रों के सोता-सोतोदा नदियों ने दक्षिणोत्तर तट सम्बन्धी चार क्षेत्र बना दिए हैं। इस प्रकार पाच भैरु सम्बन्धी कुन २० क्षेत्र हुए। प्रत्येक विभाग में यदि पृथक् २ एक एक तीर्यवर, चक्रवर्ती, और अर्धचक्रवर्ती हों तो जघन्यतः कुल ( ४४५) = २० ही होते हैं । पांच भरत, पांच ऐरावत और १६० विदेह देशों के कुल मिलाकर उस्कृष्टत: (१६.+५+५==} १७० तीर्थङ्कर, पक्रवर्ती और अपंचक्रवर्ती पर साथ हो रामले में । इदानी चक्रिरण: सम्पत्स्वरूपमाह
चुलसीदिलक्ख मदिभ रहा हया विगुणणवयकोडीमो । णवाणिहि चोइसरयणं चक्मिरथीमोसहस्सचण्णउदी ॥६८२।। चतुरशीतिलक्षभद्रेभाः रथा हया दिगुणनवकोट्यः ।
नवनिषयः चतुर्दशरनानि चक्रिस्त्रियः सहन षण्णवतिः ॥३८२|| चुलती । चतुरशीतिलक्षमभाः ५४..... स्थाश्म तावन्त: ८४००००. हया निगरगनवकोटयः १८०...... ऋतुयोग्यवस्तुबायो कालः, भाजनप्रवो महाकालः, पान्यप्रदः पाण्ड, प्रायुषादो मारणवक, तूर्यप्रवः शङ्ख, हम्यंप्रदो नैसर्पः, वस्त्रप्रवः पयः, पाभरणप्रब: पिङ्गलः, विविध रत्नामिकरप्ररो नानारत्नः इत्येते नवनिषयः । धासिधवागमणिधर्मकाकिणीगृहपतिसेनापतीभावतआयोषित्पुरोहिता तितुकारत्नानि षण्णवतिसहस्रस्त्रियाच ९६००. चाकणो भवन्ति ।।६८२॥
अब चक्रवर्ती की सम्पदा का स्वरूप कहते हैं :
पाथार्थ :-- चक्रवर्ती के कल्याणरूप चौरासी लाख हाथी, चौरासी लाल रथ, विगुणनवकोटि अर्थात् १८ करोड़ घोड़े, नवनिधियाँ, चौदह रल और ६६ हजार स्त्रिया होती हैं ।। ६५२ ॥
विशेषा:-प्रत्येक चक्रवर्ती को पास कल्याणरूप ४०००.. हाथी, ४...०० रथ, १८००००००० घोड़े, ऋतुयोग्य वस्तु प्रदायि कालनिधि, भाजनप्रद महाकाल निधि, पास्यप्रद पाण्डु, आयुषप्रद माणवकः, तूर्य अर्थात् वादित्र प्रद शंख, प्रासादप्रद नैसपं. वस्त्रप्रद पद्म, आभरणप्रद पिल और नानाकार रत्नप्रद नानारत्न निधि, इस प्रकार ये नवनिधियो चक्र, अप्ति, छत्र, दण्ड, मणि, चमं और काकिणी ये सात अचेतन और गृहपति, सेनापति, हाथी, अश्व, तक्ष ( शिल्पी), स्त्री और पुरोहित ये सात चेतन, इस प्रकार १४ रत्न तथा १६... सनिर्या होती हैं।
साम्प्रतं राजाधिराजादोनो लक्षणं गाथात्रयेणाह