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भाषा।६७-६७९
मपतियंग्लोकाधिकार
अय मागादीनां त्रयाणां स्थानमाह :
सीतासीतोदाणदितीरसमीवे जलम्हि दीवतियं । पुवादी मागहवरतणुप्पभासामराण हवे ॥ ६७८ ।। सीतासीतोदानदीतीरसमीपे जले द्वीपत्रयं ।
पूर्वादिना मागधवरतनुप्रभासामराणां भवेत् ॥ ६५८ ॥ सोता। सीतासोतोकानवीतीरसमोपे जले पूर्वापरेण मागषयरतनुप्रभाताख्यध्यन्तरामराणी दीपत्रयं मवेद ॥ ६७ ॥
मागधादि तीन स्थानों को कहते है :
गाथा:-सीता सीतोदा नदियों के तीर के समीप बल में पूर्वाद दिशाओं में मागध, बरतनु और प्रभास नाम व्यस्तर. देवों के तीन द्वीप हैं।। ६७५ ।।
विशेषा:-सीता-सीतोदा नदियों के तीर के समीप पूर्व और पश्चिम में मागध, वरतनु और प्रभास नाम के तीन देवों के तीन द्वीप हैं।
__चक्रवर्ती द्वारा साधने योग्य मागष, वरतनु और प्रभास देवों के स्थान जैसे भरत, ऐरावत के समुद्र में हैं, वैसे ही पूर्व विदेह में सीता के तर के समीप जल में हैं, मोर पश्चिम विदेह में सोतोदा के तीर के समीप जल में हैं। प्रत्येक देश की दो दो नदियाँ जिन द्वारों से सीता-सोतोदा नदी में प्रवेश करती है उन द्वारों के और धन द्वारों के बीच में जो द्वार है उनके समीप जल में उन देवों के द्वीप है। अथ विदेहक्षेत्रगतवर्षादिस्वरूपं गाथाहयेनाह--
बरसंनि कालमेघा सचविहा सच सच दिवसबही । परिसाकाले धवला बारस दोणाभिहाणभा ।। ६७९ ॥ वर्षन्ति कालमेघाः सप्तविघाः सप्त सप्त दिवसाधीन् ।
वर्षाकाले धवला द्वादपा द्रोणाभिधाना अभ्राः ॥ ६७५॥ परसंलि । सप्तविषाः कालमेघाः सप्तसप्तविसाधीन वर्षापरले वर्षन्ति । बसवणाभिषामा वावशानाः तया वर्षन्ति ।। ६७९ ॥
दो गाथाओं द्वारा विदेहक्षेत्रगत वर्षादि का स्वरूप कहते हैं
गाथार्य :-वर्षा काल में सात प्रकार के कालमेघ सात सात दिन तक ( ४६ दिनों तक ) और द्रोण नाम वाले चारह प्रकार के धवल ( श्वेत ) मेघ सात सात दिन तक ( १४ दिनों तक ) वर्षा करते हैं । इस प्रकार वर्षा ऋतु में वहाँ कुल १३३ दिन मर्यादापूर्वक वर्षा होती है ।। ६७६ ॥
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