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त्रिलोकसार
वाचा : ६६५-६६६
विशेषार्थ :- मेरु पर्वत के ईशान कोण में वैढूयं मणिमय माल्यवान् पर्वत है । आग्नेय कोण रूप्यमय महासौमनस, नैऋत्य में तपाये हुए स्वयं सहा वर्ण वाला विद्युत्प्रभ और वायव्य कोण में स्वर्ण सह वर्ण वाला गन्धमादन नामक गजदन्त पर्वत है। ये चारों पर्वत मेरु पर्वत से नील और निषेध कुलाचलों तक ( ३०२०९१ योजन ) लम्बे हैं । अर्थात् उन्हें स्पर्श करते हैं माल्यवान् पर्वत की गुफा मे निकलकर सीता नदी मे की अर्ध प्रदक्षिणा देती हुई गई है और विद्युत्प्रभ गजदन्त की गुफा से निकल कर सीतोदा नदी भी मेद की अप्रदक्षिणा देती हुई गई है।
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इदानीं विदेहदेशानां विभागं निदर्शयति
उमयं वणवे दिग मझगवेभंगण दितियाणं च ।
मझगवकस्वार चऊ पुब्ववर विदेश विजयखा ।। ६६५ ।। उभयान्त गवनवेदिकामध्यरात्रिभङ्गनदीत्रयाणां च ।
मध्यगवक्षारचतुभिः पूर्वापर विदेहविजयाधः ॥ ६६५ ॥
उभयं । उभयप्रान्तगत वन वे विकामध्य गल विभङ्गनपीत्रयाणां मध्यस्थित वक्षारपर्यंतच तुभिः पूर्वापर विदेहदेशाः
कृताः । ६६५ ।।
अब विदेह देश के विभाग का निरूपण करते है
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गाथार्थ :- पूर्व विदेह और पश्चिम विदेह क्षेत्र के सीता और सोतोदा नदी के द्वारा अर्थ अ भाग हुए हैं। इनमें से प्रत्येक भाग के दोनों प्रदेशों के वनवेदियों के मध्य में तीन तीन विभङ्गा नदी म मध्य में ही चार चार वक्षारगिरि हैं ।। ६६५ ।
विशेषार्थ :- मेरु पर्वतको पूर्व दिशा में पूर्वविदे और पश्चिम दिशामें पश्चिम विदेह है। पूर्व विदेहके मध्यसे सीता नदी ओर अपर विदेहके मध्यसे सोतोदा नदी बही है । इन नदियों के दक्षिण-उत्तर तटों के द्वारा चार क्षेत्र बन गये हैं इन्हीं एक एक क्षेत्र अर्थात् विभागों में बाठ आठ विदेह देश हैं । इनका विभाग दो वन वेदियों, तीन तीन विभङ्गा नदियों और चार चार वक्षार पर्वतों द्वारा हुआ है । यथा - सर्व प्रथम पूर्व व पश्चिम भद्रशाल की वेदी, उसके मागे वक्षार पर्यंत उसके आगे विभङ्गा नदी, फिर वक्षार पर्वत, फिर विभङ्गा, उसके मागे पुनः दक्षार पर्वत, उसके आगे पुनः विभङ्गा नदी, उसके आगे वक्षार पर्वत और उसके आगे देवारम्य व भूतारण्य वन की वेदियों हैं। ये सब मिलकर नौ हैं। इन नौ के बीच में आठ बाट विदेह देश है। इस प्रकार चार विभागों के कुल मिलाकर ३२ विदेह देश होते हैं ।
अथ वाक्षराणां विभंगनदीनां च नामादिक गाथाषट् केनाह-
तण्णामासीदुचरतीरादो पढमो पदक्खिनदो | चेचादिकूडपमादिमकूडा णलिण एगसेलगगो || ६६६॥