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भाषा : ६६३-६६४
नरतियं ग्लोकाधिका
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तररणामा । पूर्वाचिद्विशः प्रारभ्य पद्मोसरमोलर स्तिका जन कुमुदवलाशावर्त सरोयन मिति तेथ नामानि । इह बिगजेन्द्रसुरास्तिद्वन्ति ॥ १६२
गाथा : पूर्वादि दिशाओं में उनके नाम क्रम से पद्मोत्तर, नील, स्वस्तिक अञ्जन, कुमुद, पलाश और रोच है। एवंतों के ऊपर दिनाजेन्द्र देव रहते हैं ।। ६६२ ।।
विशेषार्थ :- सुदर्शन मेरु पर्वत की पूर्व दिशा में मद्रशाल वन है वहाँ से बहने वाली सीता नदी के उत्तर तट पर पद्मोत्तर और दक्षिण तट पर नीलवान् नाम के पर्वत हैं। इसी सुमेरु को दक्षिण दिशा में देव कुछ भोग भूमि की व्यवस्थिति है, इसके मध्य सीतोदा नदी के पूर्व तट पर स्वस्तिक और पश्चिम तट पर अञ्चन नाम के पर्वत है। सुमेरु की पश्चिम दिशा में जो भद्रशाल वन है, उसके मध्य सीतोदा नदी के दक्षिण तट पर कुमुद और उत्तर तट पर पलाश पर्वत है तथा मेरु की उत्तर दिशा स्थित उत्तर कुछ भोगभूमि के मध्य सीता नदी के पश्चिम तट पर अवतंश और पूर्व तट पर रोचन नाम के पर्वत हैं। इन आठों पर्वतों पर दिग्गजेन्द्र देव निवास करते हैं ।
अथ गजदन्तपर्वतानां नामादिकं गाथाद्वयेनाह
मल्लव महसोमणसो विज्जुप्पह गंधमादणिभदंता । ईमाणादो वेलुरियहप्पतवणीयहेममया ।। ६६३ ।। नीलजिसके सुरहिं पुट्ठा मल्लवगुहादु सीता सा बिज्जुष्पगिरिगुहदो सीतोदाणिस्मरिच गया ।। ६६४ ॥ माल्यवान् महासौमनसः विद्य ुत्प्रभः गन्धमादन इभदन्ताः । ईशानतः वैडूर्यरूप्यतपनीय हेममयाः ॥ ६६३ ॥ नीलनिषध सुराद्विस्पृष्टाः माल्यवद्गुहायाः सीता सा । विद्य ुत्प्रभ गिरिगुहातः सोतोदा निसृत्य गता ।। ६६४ ॥
मला माल्यवान महासमनसो विद्युत्प्रभो गन्धमादन इती भवन्ताः वैडूर्यरूपमीयहेममयाः मेरीशान दिशः प्रारम्य तिन्ति ॥ ६६३ ॥
गील । ते च मलमिषधी सुराच स्पृष्टाः । तत्र माध्यवतो गुहायाः निःसृत्य सा सोता गता विद्युत्प्रभ गिरिगुहायाश्च निर्णस्य सीतोवा गता ६६४ ॥
अब दो गाथाम्रों द्वारा गजदन्त पर्वतों के नामादिक कहते हैं :
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गाथार्थ :- मेद पर्वत की ऐशान दिशा से प्रारम्भ कर चारों विदिशाओं में कम से वैडूर्य रूप्य, सपनीय और स्वणं सह वर वाले माल्यवान, महासौमनस, विद्यप्रभ और गन्धमादन नाम
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गजदन्त पत हैं। वे गजदन्तपर्यंत सुमे६ पर्वत से नील और निषेध कुलाचल का स्पर्श करते हैं । माल्यवान् पर्वत की गुफा से सीता नदी और विद्युत्प्रभ पर्वत की गुफा से सीतोद। नदी निकल कर गई है । ६६३, ६६४ ॥
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