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त्रिलोकसार
पापा : ६६१-६६१
की लम्बाई एक हजार योजन की है, अतः पाच द्रहों की लम्बाई ५००० योजन हुई । एक द्रह से दूसरे द्रह का अन्तराल ५.० योजन है, अतः पांच द्रहों के चार अन्तरालों का योग २००० योजन हुआ। इन सबके योग । ५.+५.०+१०००+५ +५०.०+२.०० ) ९५.. मोजनों को पूर्वोक्त ११५९२३. योजनों में से घटा देने पर (१५६२२-९५०.)=२.९२२ योजन अवशेष रहे। यही अन्तिमद्रह और भद्रशाल की वेदी के बीच का अन्तराल है। इसीलिए गाथा में कहा गया है कि द्रह से २०६२ योजन आगे जाकर मद्रशाल की वेदी अवस्थित है। अथ दिग्गजपर्वतानां स्वरूपं गायादयेनाह
कुरुभद्दसालमज्मे महाणदीणं च दोसु पासेसु । दो हो दिसागइंदा सयतत्रियतद्दलुदयतिया ॥६६१|| कुरुभद्रशालमध्ये महानयोश्च यो। पाश्र्वयोः।
द्वौ दो दिशागजेन्द्रो शततावतलमुदयत्रयाणि ॥६६१।। कुरु । कुरुक्षेत्रमनशालयोः पूर्वापरभावालयोषच मध्ये महानयोरुमपपाश्र्वयो द्वौ विग्गजेन्द्रपर्वतो तिष्ठत: सेवामहदिग्गजपतानामुबयम्मुखम्पासा पथासंभयं शत प. शत ... पधाश . योजनानि स्पुः ।। ६६१ ॥
दो पाथाओं द्वारा दिग्गज पर्वतों का स्वरूप कहते हैं :
गापार्य :-कुरु अर्थात् देवकुरु और उत्तर कुरु क्षेत्र में तथा पूर्व-पश्चिम भद्रशाल वनों के मध्य में महानदी सीता और सोतोदा के दोनों पाश्वं भार्यो { तटों) पर दो दो दिमाजेन्द्र पर्वत है। इनका उदय, भूश्यास और मुसण्यास ये तीनों कम से १. योजन, सौ योजन और सबल प्रति ५० योजन है ।। ६६ ।।
विशेषार्थ :-देवकुरु, उत्तरकुरु इन दो भोगभूमियों में तथा पूर्व भद्रशाल और पश्चिम भद्रशाल वन के मध्य में महानदी सीता और सीतोदा के दोनों तटों पर दो दो दिग्गजेन्द्र पर्वत स्थित हैं । इन आठ दिमाज पर्वतों का उदय ( ऊंचाई ) १०० योजन, भूमि पर पवंतों की चौड़ाई १०० योजन और मुख मर्थात् शिखर पर • योजन चौड़ाई है।
तण्णामा पुब्बादी पउमुत्तरणीलमोत्थियंबणया । कुमुदपलासबसयरोचणमिव दिग्गजिंदसुरा ॥६६२॥ तनामानि पदिः पयोत्तरनीलस्वस्तिकासनकाः । कुमुदपलाशावतंसरोवतमिहदिग्गजेन्द्रसुराः ॥ ६६२ ॥