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नरतियग्लोकाधिकार
२४५ विशेषार्म 1- प्रत्येक द्रह के दोनों ( पूर्व, पश्चिम ) तटों पर पंक्ति रूप से पांच पांध काञ्चन पर्वत हैं जिनकी ऊंचाई १०० योजन, भू व्यास अर्थात् जमीन पर पर्वतों की चौड़ाई १०० योजन और मुख व्यास अर्थात् शिखर पर ५० योजन चौड़ाई है। ये सभी पर्वत अपने अपने हों के सम्मुख हैं। प्रश्न-पर्वतों में सम्मुखपना कैसे सम्भव हो सकता है ? उत्तर :-कानन शेलों के ऊपर जो देवों के नगर हैं. उनके द्वार सरोवरों की ओर होने से पर्वतों को हदसम्मुख कहा गया है। इन पदेवों पर स्वपर्वत नाम पारी शुक सदृश वर्ण-कान्ति के पारक देव निवास करते हैं। अथ तत तपरि नदीगमनस्वरूपमाह
दहदो गंतूणग्गे सहस्सदुगणउदिदोणि वे च कला । णदिदारजुदा बेदी दक्षिणउत्तरगमद्दसालस्स ।। ६६० ॥ ह्रदतः गत्वाग्रे सहस्रद्विकनवतिदि च फले।
नदीद्वारयुता बेदी दक्षिणोत्तरगमदशालस्य ॥६६॥ रहयो। हरेभ्यः पने सहनदिकनतिनियोजनामि २०१२ योजनेकोनविशतिभागरिकलाधिकाति भगवा नबोद्वारयुता दक्षिणोत्तरभद्रशालस्य देवो सिति । प्राक्तनाङ्गवासना। दक्षिणो २५० तरभाशाल २५० सहितमन्वर १००.० न्मासं १०५.. विवेहव्यासे १३६४ स्फेटपिरता २३१८४ पर्षीकृत्य ११५६२एतस्मिन् चित्रगिरिकुलगिर्योरन्तरं १००. चित्रनगण्यासं १.०० चित्रनगढ़बरं ५.. पश्चहदायाम ५... लेवामन्तरं च २०.. एतत्सर्वमेकीकृस्य ६५, पपीते परमलवभाशालवेक्षिकयोरमतर २०६२३ मायाति ॥ ६६ ॥
अब द्रहों से आगे नदी के गमन का स्वरूप कहते है___गापा:-द्रहों से आगे दो हजार बानवे योजन और दो कला जाकर नदी द्वारसे संयुक्त दक्षिण-उत्तर भद्रशाल वन की वेदी अवस्थित है ।। ६६० ॥
विशेषापं:-हृद से आगे २०१२ योजन जाकर नदी द्वार से संयुक्त दक्षिण उत्तर भद्रशाल वन को वेदी अवस्थित है । इसकी अङ्कु वासना
यथा-भद्रशाल बन दक्षिण दिशा में २५० योजन और उत्तर दिशा में भी २५० योजन चौड़ा है। भूमि पर सुदर्शन मेव की चौड़ाई १०.०० योजन है इन तीनों के योग ( १....+ २५०+ २५० ). १.५०. योजनों को विदेह व्यास ( ३३६८४ा योजन) में से घटा कर अवशेष का आधा करने पर ( ३३६८४.--१.५०० )- ११५९२१ योजन प्राप्त हुए।
सीता-सीतोदा दोनों नदियों के पूर्व पश्चिम तटों पर चित्रादि चार पर्वत हैं। चित्र और विचित्र पर्वत के बीच ५०० योजन का तथा यमक और मेघ के बीच ५०० योजन का अन्तराल है। चित्रादि यमक गिरि का भू व्यास १००० योजन है। चित्र पर्वत से सरोबर का अन्तर ५०० योजन है एक द्रह