SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 586
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ५४२ त्रिलोकसार बापा । ६५८-६५६ गोलु । मीलोत्तरकुलवन्त रानतम्या दाना: पान निषषदेवकुबसूरसुलसविद्युत: स्येता: पञ्च सोतासोतोक्योः हदनामानि ।। ६५७॥ पापा :-नील, उत्तरकुरु, चन्द्र, ऐरावत और माल्यवन्त ये पांच द्रह सीता नदी के हैं तथा निषष, देवकुरु, सूर, सुलस और विद्य त थे पाच सोतोदा नदी के द्रहों के नाम हैं। पइणिम्गम्मदारजुदा ने तत्परिवारवण्णणं चेसि । पउमञ्च कमलगेहे गागकुमारीउ णिवसंति ।। ६५८ ॥ नदीनिगमद्वारयुतानि तानि तपरिवारवर्णनं चैषां। पद्यमिव कमलगेहेषु नागकुमार्यो निवसन्ति ॥ ५८ ।। रगा। तानि सरासि नदोप्रवेशनिगमद्वारयुतानि । एतेषां तस्परिवारवर्णनं च पसर व तपकमलोपरिमगृहेषु सपरिवारा; मागकुमार्यो निवसन्ति ॥ ६५८ ॥ गाचार्य :-ये सभी सरोवर नदी के प्रवेश एवं निगम द्वारों से सहित है तथा इन सरोवरों के परिवार आदि कमलों का वर्णन पद्मदह के सदृश ही है किन्तु सरोवर स्थित कमलों के गृहों में नागकुमारी देवियाँ निवास करती हैं ॥ ६५८ ॥ विशेषाय :-दोनों नदियों के प्रवाह के बीच में सरोवर हैं और इन सरोवों की बेदिकाएं हैं, जो नदी के प्रवेश और निगम द्वारों से युक्त हैं। इन सरोवरों के परिवार कमलों का वर्णन पद्मद्रह के परिवार कमलों के सदृश ही है। विशेषता केवल इतनी है कि इन कमलों पर स्थित ग्रहों में नागकुमारी देवियाँ सपरिवार निवास करती हैं। दुतडे पण पण कंचणसेला सयसयतदद्धसुदयतियं । ते दहमुहा यक्खा सुरा वसंतीह सुगवण्णा || ६५९ ।। द्वितटे पञ्च पश्न काश्चनशैलाः शतशततदर्घमुदयत्रयम् । ते ह्रदमुखा नगात्या। सुरा वसन्ति रह शुकवर्णाः ॥ ६५ ।। चुतडे । तेषां सरसां सिटे पञ्च पञ्च कामचनलाः तेषामुक्यम्मुलग्याता यथासंघपं शत १०० शत १० पञ्चाश ५० योजनानि च शैला हवसम्मुखाः । कपमेतत् । तदुपरिस्यनगरद्वाराणा हवाभिमुसस्यात् । शुक्रबस्तित्तनगाल्या! सुरास्तेषामुपरि वसन्ति ॥ ६५९ ॥ माया:-उन सरोवरों के दोनों तटों पर पाच पाँच काञ्चन पर्वत है जिनका उदय, भूव्यास और प्रसन्यास क्रमशः सौ योजन, सौ योजन और पचास योजन प्रमाण है । ये सभी पर्वत हृदाभिमुख अर्थात् ह्रदों के सम्मुख हैं। इन पर्वतों के शिखरों पर पर्वत सहश नाम एवं शुकसदृश कान्तिवाले देव निवास करते हैं।। ६५६ ।।
SR No.090512
Book TitleTriloksar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Siddhant Chakravarti, Ratanchand Jain, Chetanprakash Patni
PublisherLadmal Jain
Publication Year
Total Pages829
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size19 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy