________________
त्रिलोकसार
पाश।६५४-१४
गीलणिसहादु गता सहस्समुमय तडे वरणईणे । दुगदुगसेला पुष्वो चिचो अवरो विनिसक्यो ।।६५४।। जमगो मेघो वडा पंचसयंतरठिया तदुदयधरा । वदर्ण सहस्समद्धं मिरिमामसुर, दसति गनिमूड ।। ६५ ।। नीलनिषधतो गत्वा सहनमुभये तटे बरनद्योः । द्विकद्विकशैली पूर्व: चित्र: अपर: विचित्राख्यः ॥ ६५४ ।। यमकः मेघः वृत्ताः पञ्चशतान्तरस्थिताः तदुदयधरा।
वदनं सहस्रमधं गिरिनामसुरा वसन्ति गिरिकूटे ।। ६५५ ।। गील । नौलनिषषाम्पो पुरस्तात सहस्रयोजनं गत्वा परनयोः सोतासोतोक्योदमयतवे तो दो शैली भवतः । तयोर्मध्ये पूर्वतमगतश्चित्रोऽपरतटगतो विचित्राख्यः ॥ ६५४ ॥
नमगो। यमको मेघश्च सपा ते चत्वारो प्रताः। तत्र चित्रविचित्रयोर्यमकामेधयोश्चान्सर पञ्चश्तयोजनानि, तेषां चतुर्णामुदयभूमुखप्यासा यथासंध्यं सहन १... सहन १०.० तदर्घ ५.. योजनानि । तेषु गिरिफूटेषु तगिरिनामसुरा वन्ति ।। ६५५ ।।
यमक गिरि का स्वरूप दो गाथाओं में कहते है
नापार्य :-निषष और नील कुलाचलों से ( मेह की ओर ) हजार योजन आगे जाकर उस्कृष्ट सीता और सीतोदा नदी के दोनों तटों पर दो दो पर्वत है। उनमें से सीता के पूर्व तट पर चित्र बोर पश्चिम तट पर विचित्र नाम के तथा सीतोदा के पूर्व तट पर यमक और पश्चिम तट पर मेघ नाम पर्वत हैं। ये चारों पर्वत गोल हैं और पांच पांच सौ पोजन के अन्तराल से स्थित है। इन पर्वतों की ऊंचाई, भूव्यास और मुख व्यास कम से एक हजार, एक हजार और पांच सौ योजन है। इन गिरिकूटों पर पर्वत सदृश नाम वाले ही देव रहते हैं ।। ६५४, ६५५ ।।
विशेषाय':-नील और निषध कुलाचलों से मेरु पर्वत की ओर १००० योजन आगे जाकर उत्कृष्ट सोता और सोतोदा नदियों के दोनों तटों पर दो दो पर्वत हैं। इनमें से सीता नदी के पूर्व तट पर चित्र और परिचम तट पर विचित्र नामक पर्वन हैं । इन दोनों पर्वतों के बीच ५०० योजन का
अन्तराल है। इसी अन्तराल में ५.० योजन विस्तार वाली सीता नदी है। सीतोदा नदी के पूर्वतट पर • यमक और पश्चिम तट पर मेघ नाम के पर्वत हैं। इन दोनों में भी ५.० योजन का अन्तराल है बोर
अन्तराल में ५०० योजन विस्तार वाली सीतोदा नदो है। ये चारों यमगिरि गोल हैं। इन चारों की ऊंचाई १००० योजन, भूव्यास अर्थात् जमीन पर इनको चौड़ाई १००० योजन और ऊपर की चौड़ाई ४०० योजन प्रमाण है। इन गिरि कूटों पर अपने अपने पर्वत के नाम वाले अर्थाच चित्र, विचित्र यमक और मेघ नाम के चार देव चारों कूटों पर क्रम स निवास करते हैं।