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त्रिलोकसा
पाथा : ६५०-६१ उसर । तस्य जम्बूवृक्षस्योत्तरकुलगिरिविभागस्यशाखायो जिनगेहोऽस्ति । शेषे शाखाये यक्षकुलोभवयोः पावरानावरयोरावासाः सन्ति ॥ ६४६ ॥
गाया :- उस जम्यूवृक्ष की जो शाखा उत्तर कुरुगत नील कुलाचल को और गई है, बस पर जिनमन्दिर है । अवशेष तोन शाखाओं पर यम कुलोत्पन्न आदर अनादर नामक देवों के आवास
अथ परिवारवृक्षाणां प्रमाग तेषां सस्वामिकत्वं चाह
जंबूतरुदलमाणा जंबुरुक्खम्स कहिदपरिवारा । आदरअणादाण परिवारावासभूदा ते ॥ ६५० ॥ जम्बूतरुदल माना जम्बूवृक्षस्य कथितपरिवाराः ।
आदरानादरयोः परिवारावासभूतास्ते ।। ६५० ।। जंबू । अचूक्षपरिवारा अम्बूवृक्षप्रमाणाप्रमारणा से चादरानावरयो। परिवारावासभूताः ॥ ६५०॥
परिवारवृक्षों का प्रमाण और उनका स्वामित्व कहते हैं
गाथा:-जम्बूवृक्ष का जो प्रमाण कहा गया है, उसका अर्धप्रमाण परिवारजम्बूवृक्षों का कहा गया है। ये सभी परिवारजम्बू वृक्ष आदर अनादर देवों के परिवारों के आवास स्वरूप हैं ।। ६५० ।।
विशेषार्ष:-परिवार जम्बूवृक्षों का प्रमाण मुख्य जम्बूवृक्ष के प्रमाण का आधा है तथा परिवार जम्बूवृक्षों की जो शाखाएं हैं उग पर आदर अनादर यक्ष परिवारों के आवास बने
श्रय शाल्मलीवृक्षस्वरूपं पाथादयेनाह
सीतोदावरतीरे णिसहसमीवे सुरदिणेरिदिए । देवकुरुम्हि मणोहररुप्पयले सामली सपरिवारो ॥६५१॥ सीतोदापरतीरे निषधसमीपे मुरादिनैऋत्यां।
देवकुरो मनोहररूप्यस्थले शाल्मली सपरिवारः ॥ ६५१ ॥ होतोया। सोतवापरतीरे निषधसमीपे सुराने नया विशि देवकुरुक्षेत्रे मनोहररुप्यस्थले सपरिवारः शाल्मलीवुमोरित । १४०१२० ॥ ६५३ ॥
दो गाथाओं में शाल्मली वृक्ष का स्वरूप कहते हैंगाचार्य:--सीतोदा नदी के पश्चिम तट पर, निषधकुलाचल के समीप, सुदर्शन मेरु की नैऋत्य