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शया । ६४७-६४६-६४६
नर लिये ग्लोकाधिकार
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३२०००+४****+ ४५०००+७० १४० १२० अर्थात् सम्पूर्ण जम्बूवृक्षों का प्रमाण एक लाख चालीस हजार एक सौ बीस है ।
दलगाढवासमरगय जोयणदुगतुंग सुत्थिरवधो । पीठिय उवरिं लंबू चजदलवासदीह चउसाहा ।। ६४७ ।। दलगाडव्यास मरकतः योजनद्विकलुङ्गः सुस्थिरस्कन्धः ।
पीठादुपरि जम्बू वज्रदलान्यास दीर्घाः चतुःशाखाः ॥ ६४७ ॥
बल । प्रयोजनगाथरसद्वघासो मरकतमयः पीठादुपरि योजनयोङ्गः सुरपरकम्पो जम्बूवलोsसि | स्कन्धादुपरि वस्त्रमय्यो थंयोजनव्यासा प्रयोजनवोचितस्रः शाखा सन्ति ॥ ६४७ ॥
गाथार्थ :- अघंयोजन गहरी और एक कोश चौड़ी जब से युक्त तथा पीठ से दो योजन ऊंचे मरकतमणिमय, सुदृढ़ स्कन्ध से सहित जम्बूवृक्ष है । अपने सकन्ध से ऊपर वज्रमय अर्ष योजन चौड़ी और आठ योजन लम्बी उसकी चार शाखाएं हैं ।। ६४७ ।।
विशेषार्थ :- पीठ के बहुमध्य भाग में पाद पीठ सहित मुख्य जम्बूवृक्ष है जिसका मरकत मणिमय सुदृढ़ स्कन्ध पीठ से दो योजन ऊंचा, एक कोस चौदा प्रोर अर्थ योजन अवगाह ( नींव ) अहि है। सपने ऊपर अर्थ योजन चौड़ी और आठ योजन लम्बी उसकी चार शाखाएं है ।
जाणार सादा पवालसुमणा सुटिंगसरिफला 1 पुडविमया दतुंगा मज्मेरो बच्चदुव्वासा || ६४८ ॥ नानारत्नोपशाखा प्रवालसुमनाः मृदङ्गसदृश कलः ।
पृथ्वीमयः दशतुङ्गः मध्ये षट्चतुर्व्यासः । ६४८ ॥
राणा । स च वृक्षो नानारत्ममयोपशाखः प्रबालवसुमनाः मृबङ्गसशफलः पृथ्वीमयः वयोजनतुङ्गो मध्ये पथासंख्यं वद् ६ चतु ४ योजनव्यासः स्यात् ॥ ६४८
गाथार्थ :- वह जम्बूवृक्ष नाना प्रकार की रत्नमयी उपशाखाओंों से युक्त, प्रवाल (मूंगा) सहा वर्ण वाले पुष्प और मृदङ्ग सदय फल मे संयुक्त पृथ्वीकायमय है ( वनस्पति काय नहीं ) उसकी सम्पूर्ण ऊंचाई इस योजन है। मध्य भाग की इसकी चौड़ाई ६ योजन और अन भाग की चौड़ाई चाथ योजन प्रमाण है ।। ६४८ ॥
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उत्तरकुलगिरिसा जिणो सेससादतिदयम् |
मादर अणादराणां अक्खकुलुत्थाणमादासा ।। ६४९ ।। उत्तरकुरु गिरिशाखायां जिनगेहः शेषशारात्रिमे । आदरानादरयोः यक्षकुलोत्थयोरावासाः ॥ ६४९ ॥