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त्रिलोकसार
गाथा : ८-९ जगच्छुणी का प्रमाण-पज्य के अर्धच्छेदों में असंख्यात का भाग देने पर जो एक भाग आवे उतनी बार पनांगुलों का परस्परमें गुणा करने पर जगच्छ णी का प्रमाण प्राप्त होता है । जैसे—मान लो अङ्कसंदृष्टि में पल्य का प्रभागा १६. असंख्यात का प्रमाण २ और धनांगुल का प्रमाण ४२= x ६५= अथवा ६५५३६' है । अतः पल्य { १६ ) के अधच्छेद ४६२ असंम्यान ) =लब्ध २ आया, इसलिये दो बार धनांगुलों ( ६५५३६' x ६५५३६' ) का परस्पर में गुणा करने से जगच्छेणी का प्रमाण प्राप्त होता है । अर्थात् ( ६५५३६ x ६५५३६२)xt६५५३६ ४६५१६६२ = ६५५६६२४६५५३६५ ( वादाल x एकट्ठी) अथवा ( ४२ ४६५ = ) X (४२= x ६५ - ) प्रमाण जगच्छेणी होती है । यहाँ सूच्यंगुल=६५५३६ और धनागुल = ६५५३६' है। अथ वृन्दांगुलप्रतिपत्त्यर्थ माह
पल्लनिदिमेच पल्लाणण्णोण्णहदीए अंगुलं सूई । तन्नपणा कमसो पटरघणंगुल समक्खादो ||८|| पल्यच्छदमापल्यानामन्योन्यहृत्या अंगुलं सूची।
तर्गधनी क्रमश: प्रतरघनांगुले ममाख्याते ।। ८ ।। पहल । पल्य १६ छेश ४ मात्रपल्यानt (१६४१६४१६४१६ ) मन्योग्यहत्या सूख्य शुलं ६५ -- सवर्गघनौ प्रतर ४२= धनागुले ४२ = x ६५ मशः समास्याते |
अब धनांगुल का स्वरूप बताते हैं :
पापा :-पल्प के जितने अचंच्छेद होते हैं, उतनी बार पल्य का परस्पर में गुणा करने से सूच्यंगुल का प्रमाणा प्राप्त होता है। इस सूच्यंगुल के वर्ग को प्रतरागुल और इसीके घन को घनांगुल कहते हैं ॥ ८ ॥
विशेषार्थ :-मानलो-पस्य का प्रमाण १६ है । इसके प्रर्धच्छेद ४ हुए, अतः चार बार पल्म (१६४१६४१६४१६ ) का परस्पर में गुणा करने से सुच्यंगुल ६५%D ( ६५५३६ ) प्राप्त हुआ। इस सूज्यंगुल के वर्ग ४२= ६५५३६ ४३५५३६ ) को प्रतरांगुल तथा सूल्यंगुल के धन ( ६५५३६२४ ६५५३६ ) या ( ६५५३६४६५५३६ ४६५५३६ ) = ६५५३६३ को ( ४२.४६५ = ) घनांगुल कहते हैं। अथ मानप्रतीत्यर्थ प्रक्रियामाह
माणं दुविहं लोगिग लोगुत्तामेत्य लोगिनं छद्धा । मागुम्माणोमाणं गणिपडिनप्पडिपमाणमिदि ।। ९ ।।
मानं द्विविधं लौकिक लोकोत्तरमत्र लौकिक पोढा ।
मानोन्मानावमानं गणिप्रतितत्प्रतिप्रमाण मिनि ।।९।। मारणं । मान विविध लौकिकं लोकोत्तरमिलि । प्रत्र लौकिक पोळा मानोन्मानापमानगरिणमानप्रतिमामताप्रतिमानमिति ॥