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________________ गाथा: ७ लोकसामान्याधिकार की ऊंचाई और एक मुरज की ऊंचाई मिला कर सम्पूर्ण लोक की चौदह राजू ऊंचाई ( उदय ) कही गई है। यहाँ पर लोक को डेह मृदंगाकार कहा गया है, उसका भाव यह है कि जैसे अर्ध मृदंग नीचे से चौड़ा और ऊपर संकरा होता है । असी प्रकार अधोलोक नीचे मान राज चौड़ा है, और कम से घटना हुआ ऊपर एक राजू चौदा रह गया है। इसके ऊपर एक मृदंगाकार ऊध लोक कहा गया है । इसका भाव भी यह है कि जैसे मृदंग नीचे ऊपर संकरा और बीच में चौड़ा होता है, उसी प्रकार ऊध्वंलोक भी नीचे एक राजू चौड़ा है इसके ऊपर कम से बढ़ता हुआ बीच में ५ राजू चौड़ा हो जाता है । पुनः क्रम से घटता हुआ अन्त में एक राजू चौड़ा रह जाता है। मृदङ्गाकार कहने का यह भाव नहीं है कि लोक मृदङ्ग के सदृश गोल है यदि लोक को मृदङ्ग के सदृश गोल माना जाय तो अधोलोक का धनफल १०६ घन राज तथा ऊर्ध्वलोक का घन फल ५८६३५ धन राजू प्राप्त होता है। इन दोनों को जोड़ने में मृदङ्गाकार गोल लोक का क्षेत्रफल १०६ +५८१५ - १६४३ घन राजू प्राप्त होता है। जो ३४३ घन रान के संध्यातवें भाग प्रमाण है । अतः लोक चौकोर है। क्योंकि चौकोर लोक का घनफल ७ राज के ( श्रेणी के ) घन स्वरूप ३४३ धन राजू प्राप्त है । ( धवल पु० ४ पृष्ठ १२-२२)। अथ प्रसङ्गायात रज्जुप्रतीत्यर्थमाह जगसेढिमचमागो रज्ज सेढीवि पल्लछेदाणं । होदि असंखेअदिमम्पमाणविदगुलाण हदी ।। ७ ।। जगमलेरिणसप्तमभाग: रजः घरिणरपि पल्यच्छेदानाम् । भवति असंख्येयप्रमाणवृन्दांगुलानां हृतिः ॥ ७॥ जग। अङ्कसंरष्टिप्रवर्शनद्वारेण गामार्यों विनियले । जगण्याः १८४२= सप्तम भागो रज्जुः । बरिणापि केस्यत्रोच्यते । पस्य १६ छेवानां ४ पसंख्येय भाग २ प्रमितवृन्दाज गुलामा ४२६५= ४२ = ६५= परस्परा हतिः श्रेणिः १८= ४२ = ॥७॥ अन्न प्रसङ्गवश राजू का स्वरूप कहते हैं : गाचार्य :--पल्य के अघच्छेदों में असंख्यात का भाग देने पर जो एक भाग प्राप्त हो उतनी बार धनांगुलों का परस्पर में गुणा करने पर जगच्छ शी होती है, और जगच्छ पी के सातवें भाग प्रमाण राजू होता है ।। ७ ।। विशेषापं:- जगच्छेणी के सातवें भाग को राजू कहते हैं जैसे जगच्छणी का प्रमाण वादाल से गुणित एकट्ठी-(६५५३६४४६५५३६२ ) है । उसमें सात का भाग ( ६५५३६" x ६५५३६२ ) देने पर जो एक भाग प्राप्त हो वह राजू का प्रमाण है । अथवा एकट्टी ( १८= 1 X बादाल ( ४२ = }राज का प्रमाण प्राप्त होता है।
SR No.090512
Book TitleTriloksar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Siddhant Chakravarti, Ratanchand Jain, Chetanprakash Patni
PublisherLadmal Jain
Publication Year
Total Pages829
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size19 MB
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