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________________ गाथा । ९३१-१३२ निरतिर्यग्लोकाधिकार ५१३ हंस मयूरादि यन्त्रों से संयुक्त हैं, तथा क्रमशः पचास योजन और उसके अर्थ योजन ( २५ यो० ) प्रमाणु दीर्घता और व्यास तथा १० योजन गात्र से युक्त हैं ।। ६२८, ६२९.६३० ॥ विशेषार्थ :- आग्नेय दिशा में उत्पल गुल्मा, नलिनी, उत्पला और उपलोवल नाम वाली चार बावड़ी हैं। नैऋत्य दिशा में भृङ्गा, भृङ्गनिभा, कज्जला और कज्जलप्रभा है। वायव्य दिशा में श्रीभूता श्रीकान्ता श्रीमहिता और श्रीनिम्रया है, तथा ईशान दिशा में नलिनी, नलिनीगुल्मा, कुमुदा और कुमुदप्रभा नाम वाली ये चार बावड़ी हैं। ये १६ हो वापियों मणिमय तोरणों, रत्नमय सीढ़ियों और हंस, मयूर आदि यन्त्रों से संयुक्त हैं। ये प्रत्येक बावड़ी ५० योजन लम्बी, २५ योजन चौड़ी और १० योजन गहरी हैं। अथ तन्मध्यप्रासादस्वरूपं गाथाद्वयेनाह- दणिउतरवावीज् सोइम्म जुगलपासादा । पणघणदलचरच्यवासा दलगाढच रस्सा ||६३१ ।। दक्षिणोत्तर वापीमध्ये सोपमंयुगल प्रासादाः । पञ्जघनदळचरणोच्छ्रयध्यासाः दलगाढचतुरस्राः || ६३१ ॥ fe | मेरोरपेक्षमा दक्षिणोत्तरवापीमध्ये सौधर्मज्ञानयोः प्रासादाः पचपन १२५ बल ६२३ पचधनचतुर्थांश ३१ पव्यासाः प्रयोजनगाषाः चतुरस्राः सन्ति ॥ ६३१ उन बावड़ियों के मध्यस्थित प्रासादों का स्वरूप दो गाथाओं द्वारा कहते है गामार्थ :- दक्षिण और उत्तर दिशा की वापियों के मध्य में क्रमश सोधमेशान इन्द्रों के प्रासाद हैं। उनकी पक्ष के धन का अर्थ प्रमाण ऊंचाई उसके चौथाई प्रमाण व्यास और अर्थ योजन प्रमाण गाढ ( नींव ) है। ये सभी प्रासाद चौकोर है ।। ६३१ ॥ विशेषार्थ :- मेरु की अपेक्षा दक्षिणोसर बावड़ियों के मध्य में सीघशान इन्द्रों के भवन है । अर्थात् रु के दक्षिण की ओर आग्नेय और नैऋत्य दिशा स्थित बावड़ियों में सौष इन्द्र के प्रासाद और उत्तर की ओर अर्थात् वायव्य और ऐशान दिशा स्थित बावड़ियों में ऐशान इन्द्र के प्रासाद है । ये प्रसाद पवन के अत्रमा अर्थात् ६२३ योजन ऊंचे ३१३ योजन चौड़े और प्रधं योजन प्रमाण गहरी नींव से संयुक्त एवं चौकोर हैं । ६७ सोचिदठाणासिदपरिवारेगिंदोडिदो सवासादे । सम्वभिणं कहियवं सोमणसवणेवि सविसेसं ।। ६३२ ।। स्वोचितस्थानासितपरिवारेण इन्द्रः स्थितः स्वप्रासादे । सर्वमिदं कथितव्यं सौमनस्यतेऽपि सविशेषं ।। ६३२ ।।
SR No.090512
Book TitleTriloksar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Siddhant Chakravarti, Ratanchand Jain, Chetanprakash Patni
PublisherLadmal Jain
Publication Year
Total Pages829
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size19 MB
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