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________________ ५२६ त्रिलोकसार पाया। ६३-६२४ (स्वर्ण) वर्ण के हैं तथा उत्तर दिशा के स्वामी कुबेर लोकपाल को आयु कुछ कम तीन पल्य और आभूषण सफेद रङ्ग के हैं । अथ तेषां कल्पमानसम्बन्धिश्वमाह--- तेय सयंपहरिद्वजलपवरगुप्पहा विमाणीसा | कप्पे सु लोयवाला पहुणो बहुसयविमाणाणं ।। ६२३ ।। ते च स्वयम्प्रभारिष्टजलप्रभवल्गुप्रभा विमानेशाः । कल्पेषु लोकपाला प्रभवः बहुशतविमानानाम् ॥ ६२३ ।। ते य । ते च सोधर्मस्य लोकपालाः कल्पेषु स्वयम्प्रभारिलप्रभवस्नुप्रभा विमानेशाः । पुनस्ते बहुत ६६६६६६ विमानानामधिपतयः ॥ ६२३ उनके कल्प विमान सम्बंधित्व को कहते हैं. : गाथार्थ :- कल्पों में वे चारों लोकपाल क्रमणः स्वयम्प्रभ, अरिष्ट, जलप्रभ और वल्गुप्रभ विमानों के स्वामी हैं, तथा अन्य भी सैकड़ों विमानों के स्वामी हैं ।। ६२३ ।। विशेषार्थ :- सौधर्मकल्प में सौधर्मेन्द्र के वे चारों लोकपाल क्रमशः स्वयंप्रभ, अरिष्ट, जलप्रभ और वल्गुप्रभ विमानों के स्वामी हैं। इतना ही नहीं स्वर्गों में ये ६६६६६६ विमानों के अधिपति है, और मेरु पर्वत पर भी इनके बहुत से भवन है । अथ नन्दनवनस्यभ्यन्तरं सपरिकरमाह बलमदणामकूडे गंदणगे मेरुपन्चदीसाणे | उदय महियसयदलगो राष्णामो वेतरी बसई || ६२४ ॥ बलभद्रनामकूटे नन्दनगे मेरुपर्वतशान्याम् | उदयमही कशतदलकः तन्नामा व्यन्तरो वसति ॥ ६२४ ।। बलभद्द | पर्वतशान्यां विशि नन्वनस्ये शतोदयशल भूभ्यासे लड्लाने बलनामकूटे बलभद्रनामा व्यन्तरो वसति ॥ ६२४ ।। नन्दन वन में रहने वाले व्यन्तर देव एवं उसके परिकर का कथन करते हैं गाथार्थ :- मेरु पर्वत की ऐशान दिशा स्थित नन्दन वन में सौ योजन ऊंचा तथा भूमि पर सी योजन चौड़ा और ऊपर १० योजन चौड़ा बलभद्र नामका कूट है जिसमें बलभद्र नामका व्यन्तर देव निवास करता है ।। ६२४ ।। अथ नन्दनवनस्थच सतीनामुभयपारस्य कुटादीन् गायाश्रयेणाह -
SR No.090512
Book TitleTriloksar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Siddhant Chakravarti, Ratanchand Jain, Chetanprakash Patni
PublisherLadmal Jain
Publication Year
Total Pages829
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size19 MB
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