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________________ पाथा: ६१७ मरविर्यग्लोकाधिकार एकयोजनहानिणयः स्यात् । एतसवा एकयोजनोदयस्य एसाबच्चये सहनयोजनोपयस्य किमिति सम्पास्यापतिते चयः स्याद १०। एतत्क्षस्लकमेरोरप्रे वपमाणमूत्र्यासे १४०० मेलयेश्वेद चित्रातलध्यासः स्यात् ५. । एतस्मिन् तदानी १० प्रपनीतायां सत्या १४०० मून्यास: स्यात् । एताववालो एकयोमनोदये एतावदानी १० किमिति सम्पातिते १००० तत्रस्योदयः स्यात् । एतापदुदयस्य । एतावद्वानी एतापवुवयस्य ५.० किमिति सम्पात्यापयत्यं ५० तं मूल्यासे १४०० मपनयेसमेत तदुपरितनन्यासः स्यात् ६३५० । एतावडामोएकोपये १ एतावदानी ५० किमितिसम्पातिते ५.. तत्रस्योषय: स्यात् । एतापवुग्यात्य १ एतावढ़ानौ एतावदुषयस्य १०००० किमिति सम्पायापतिते' लब्ध १००. अषस्तमध्यासे ९३५० पनये। ८३५० एतन्नन्दनसमसद्रव्यासः स्यात् । सनन्द्रयोईमोरस्सेधोनन्तर एवानीत: स एतावतपस्य १ एताबड़ानो को एतावदुवमस्म ४५५०० किमिति सम्पात्यापतितं ४५५० मषस्तमसमवयम्यासे ५३५. अपनये ३८०० समगोपरिमक्षेत्रम्यासस्यात् । एतावद्वानी एकोक्ये १ एतावद्वानो ४५५० किमिति सम्पातिते ४५५०० सत्रयोदयः स्यात् । एताबदुवयस्म १ एतावानी एतावतुक्यस्य १०००० किमिति सम्पात्यापतिते १... अषस्तनम्यासे ३८०० प्रपनयेत् २८०० एतत्सौमनसहन्तव्यासः स्यात् । अयः प्रागामीतः । एतापवुवयस्य १ एतावडामो पर एतावद्वयस्य १८०० किमिति सम्पास्यापतितं १५०० सातव्यासे २८०० प्रपनयेत् 1... एतन्मेरोमखण्यासः स्यात् । एतावद्वानोएकोदये १ एतावद्धानो १८ किमिति सम्पातिते १८०.. तस्पोयय: स्यात् । चूलिकोदयभूमुखान्याता: सर्व मेणाम वक्ष्यन्ते ॥ ६१७ ॥ आगे चारों क्षुल्लक ( छोटे ) मेरु पर्वतों का हानिचय प्राप्त करने के लिए सूब कहते हैं : गाथा:-भूमि से भयोजन की हानि एरु १ योजन को ऊँचाई प्राप्त होती है, तब t.. योजन की हानि पर कितनी ऊचाई प्राप्त होगी? इस प्रकार त्रैराशिक करने पर शतवर्ग अर्थात् Re... योजन पारों क्षुल्लक मेरु पर्वतों की नन्दन वन से ऊपर समरुन्द्र व्यास की ऊंचाई का प्रमाण प्राप्त होता है। सौमनस वन के ऊपर भी समरुन्द्र व्यास की ऊँचाई का प्रमाण इतना ही विशेषाप: भूमितः अर्थात नीचे से कर योजन व्यास को हानि होने पर एक योजन ऊंचाई प्राप्त होती है. तो नन्दन वन के दोनों पार्श्व भागों में १००० योजन ध्यास घटने पर कितने योजन ऊंचाई प्राप्त होगी ? इस प्रकार राशिक करने पर शतवगं अर्थात १००.. योजन की ऊंचाई प्राप्त होती है। यही अर्थात् १०.०० योजन ऊंचाई का प्रमाण नन्दन वन से ऊपर समरुन्द्र व्यास का तथा सौमनस वन से ऊपर सम रुन्द्र व्यास का प्रमाण है। इन चारों शुल्लक मेरु पर्वतों के सल भाग की . सम्पात्यायतित (प.)।
SR No.090512
Book TitleTriloksar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Siddhant Chakravarti, Ratanchand Jain, Chetanprakash Patni
PublisherLadmal Jain
Publication Year
Total Pages829
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size19 MB
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