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________________ ५२२ त्रिलोकसार पाथा: ११७ चौड़ाई ६४०० योजन है, और शिखर का विस्तार १००० योजन है। यही क्रम से भूमि और मुख हैं । इन पर्वतों को सम्पूर्ण ऊंचाई ८४००० योजन है । ६४०० भूमि में से १००० मुख घटाने पर ४०० योजन हानि का प्रमाण प्राप्त हुआ । जबकि ८४.०० योजन की ऊंचाई पर ८४.. यो. की हानि होती है, तब १ योजन की ऊंचाई पर किलनी हानि होगी? इस प्रकार राशिक करने पर (12) योजन क्षय ( हानि ) या वृद्धि का प्रमाण सर्वत्र प्राप्त होता है। इसी को रखकर १ योजन की ऊंचाई पर योजन को वृद्धि होती है, तब १००० योजन की ऊंचाई पर कितनी वृद्धि होगी? इस प्रकार राशिक करने पर वृद्धि का प्रमाण { 229:2}= १०० योजन प्राप्त हुआ। इसे चारों क्षुल्लक मेरु पर्वतों के आगे कहे जाने वाले १४०० योजन भूव्यास अर्थात् पृथ्वीतल पर मेरु पर्वतों की चौड़ाई में जोड़ देने पर (६४.+१००)- ६५०० योजन चित्रा पृथ्वी के तल भाग पर चारों शुल्लक मेक मन्दरों की चौड़ाई का प्रमाण प्राप्त होता है, तथा ६५०० योजनों में से इतनी हानि {१.. योजन ) का प्रमाण घटा देने पर मेरु पर्वतों के भूभ्यास का प्रमाण प्राप्त होता है, तथा योजन को हानि पर एक योजन ऊंचाई प्राप्त होती है, तब १०. यो. को हानि पर कितनी ऊंचाई प्राप्त होगी। इस प्रकार राशिक करने पर ( १00420 ) १००० योजन चित्रा पृथ्वी स्थित मैफ तल से समभूमि पर्यन्त की ऊंचाई का प्रमाण प्राप्त होता है । जबकि १ योजन की ऊंचाई पर योजन की हानि होती है, तब ५०० योजन की ऊंचाई पर कितनी हानि होगी ? इस प्रकार त्रैराशिक करने पर (१ )५. भोजन को हानि प्राप्त हुई। इसे भू व्यास में से घटा देने पर ( ६४०० - ५.)-१३५० योजन नन्दनवन के बाद मेरु पर्वतों के व्यास ( चौड़ाई ) का प्रमाण प्राप्त होता है। जबकि योजन की हानि पर १ योजन की ऊंचाई है, तब ५० योजन की हानि पर कितनी कंचाई प्राप्त होगी? इस प्रकार राशिक करने पर (५.४१०)=.० योजन भद्रशाल वन से नन्दन वन की ऊँचाई का प्रमाण प्राप्त होता है। जबकि १ योजन की ऊंचाई पर योजन की हानि होती है, तब १०००० योजन की ऊंचाई पर कितनी हानि होगी । इस प्रकार त्रैराशिक करने पर १.०० योजन की हानि का प्रमाण प्राप्त हुआ । मन्दन वन के दोनों पाश्वं भागों पर ( ५००+५.) १.०० योजन की युगपत् हानि होती है। इसे नन्दन वन के बाह्य मेह व्यास में से घटा देने पर (१३५०-१..)=१३५० योजन नन्दन वन के अन्तर मेरु व्यास का प्रमारण प्राप्त हुआ। यतः यह १०.० योजन को चोड़ाई नन्दन वन पर एक साथ संकुचित हुई है, अतः नन्दन वन से १०००० योजन की ऊंचाई पर्यन्त मेरू पर्वत के समरुन्द्र अति समान चौड़ाई का प्रमाण ८३५. योजन ही है। यहाँ दोनों समरुन्द्रों के उत्सेध ( ऊँचाई ) की समानता लाई गई है। जबकि १ योजन की ऊंचाई पर योजन घटता है, तब ( नन्दन वन के पश्चात् समन्द ऊंचाई के बाद ) ४५५०० योजन की ऊंचाई पर कितना घटेगा? ऐसा त्रैराशिक करने पर ( 48 ) =४५५० योजन प्राप्त हुए, पन्हें अघस्तन समस्न्द्र व्यास 10 में से घटाने पर ( ८३५०-४५५०)-३८० योजन समरुन्द्र के उपरिम क्षेत्र
SR No.090512
Book TitleTriloksar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Siddhant Chakravarti, Ratanchand Jain, Chetanprakash Patni
PublisherLadmal Jain
Publication Year
Total Pages829
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size19 MB
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