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पाया: ६१६
नरति ग्लोकाधिका
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३२७२ सोमन साम्यन्तरण्यासः स्यात् । पत्रोश्लेषः प्रागानीतसमदन्द्रोदय एव स्यात् । एतावदुवस्य १ एतावद्धानौ सत्यां एतावदुवधश्य २५००० किमिति सातिते २२७२६६ पाण्डु के हानिः स्यात्। एत २२७२६ सौमनसाम्यन्तरस्यासे ३२७२६ प्रपनयेच्चेत् १००० पाण्डुरुः प्रस स्यात् । पाण्डुकहानियां २२७२६ शांशिनौ मेलयिया ५००० प्रादेयासेत्यादिविधिना समस्यापर्यात २५००० पाण्डुकपर्यन्तोत्सेधः स्यात् ॥ ६१६ ॥
आगे समरुन्द्र की ऊंचाई प्राप्त करने का विधान कहते हैं :
गया :- कि योजन हानि पर एक योजन की ऊँचाई प्राप्त होती है, तब १००० योजन हानि पर कितनी ऊंचाई प्राप्त होगी | इस प्रकार त्रैराशिक करने पर ( 10 ) - ११००० योजन ऊंचाई का प्रमाण प्राप्त हुआ । यही सुदर्शन मंत्र के ऊपर नन्दन और सौमनस वनों के समयन्द्र की ऊँचाई का प्रमाण है ।। ६१६ ।। विशेषार्थ :- जबकि योजन की हानि पर १ योजन की हानि पर कितनी ऊंचाई प्राप्त होगी ? इस प्रकार त्रैराशिक करने प्राप्त हुई। यही सुदर्शन मेरु के नन्दन और सौमनस वनों के बीच समरुन्द्र ऊंचाई का प्रमाण है । अर्थात् सुदर्शन मेरु के तल भाग से नन्दन वन पर्यन्त कम से घटती हुई चोड़ाई है। इसके बाद दानों पाव भागों में एक साथ १००० योजन घट जाने से कटनी का आकार बन गया है। इसी कटनों पर नन्दन वन है। इस बम के मध्य से मेघ की चौड़ाई ११००० योजन ऊपर तक समान रूप से गई है । चौड़ाई में कुछ भी हानि नहीं हुई। सोमनस वन पर्यन्त सौमनस की हानि का प्रमाण ४६८१९३६ योजन प्रमाण है, तथा नन्दन वन पर मेरु का अभ्यन्तर व्यास ८१५४६ योजन था अतः इसमें से सौमनस का हानि प्रमाण घटा देने पर (८६५४४६१) ४२७२६ योजन सौमनस पर ( सौमनसवन सहित ) मेष व्यास रूप सौमनस का बाह्य व्यास प्राप्त हुआ ।
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ऊंचाई है, तब १००० योजन को पर ११००० योजन की ऊँचाई
सौमनस की हानि ४६८१५ अंशी मिला लेने पर अर्थात् भिन्न तोड़ लेने पर योजन होता है। भोजन हानि पर १ योजन की ऊंचाई प्राप्त होती है, तो १५०० योजन की हानि पर कितनी ऊंचाई प्राप्त होगी ? इस प्रकार राशिक करने पर 11211109 ) = ५१५०० योजन क्रम हानि का प्रमाण प्राप्त हुआ। अर्थात् ११००० योजन समइन्द्र प्रमारण के बाद मेरु की चौड़ाई में हानि होना प्रारम्भ हुई, जो कम कम से ५१५०० योजन तक होती गई है। इसके बाद सुमेरु पर्वत चोड़ाई में युगपत् ५०० योजन अर्थात् दोनों पाश्वं भागों में १००० योजन कम हो जाता है, इसी से कटनी बनती है और उसी कटनी पर सोमनस वन की अवस्थिति है। पूर्वोक्त ४२७२६ योजन सोमनस के बा ध्यास में से दोनों पावों पर कम हुए १००० योजनों को घटा देने पर (४२७२६६ १००० }-- ३२७२६] योजन सोमनस का अभ्यन्तर व्यास प्राप्त होता है। यहां पर भी पूर्वोक्त प्रमाण सौमनस से प्रारम्भ कर मेरू की ११००० योजन की ऊंचाई तक मेरु की चौड़ाई समान (समइन्द्र है। अर्थात्