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________________ ५१५ त्रिलोकसार बामा । ६१६ मुखव्यास में चय ( वृद्धि ) का प्रमाण जोड़ देने पर मेरा पर्वत के तल विस्तार का प्रमाण एवं वनों के बाह्य अभ्यन्तर विस्तार का प्रमाण प्राप्त होता है ।। ६१५ ॥ विशेषार्थ :- मेष पर्वत की तत्तत् कटनी गत भू व्यास अर्थात् नीचे की चौड़ाई के प्रमाण में अपनी अपनी हानि का प्रमाण घटा देने पर एवं तत्तत् कटनी के मुख व्यास अर्थात् ऊपर की चौड़ाई के प्रमाण में अपने अपने चय ( वृद्धि ) का प्रमाण जोड़ देने पर गिरि का तल विस्तार और वनों के बाह्य अभ्यन्तर विस्तार का प्रमाण प्राप्त होता है । यथा पूर्व गाथा में मेरुवल की वृद्धि का प्रमाण ९० योजन प्राप्त हुआ था, इसको मेरु के भू व्यास अर्थात् पृथ्वी पर मेरु की चौड़ाई १०००० योजन में जोड़ देने पर ( १०००० - ६०१ ) = १००१०११ योजन चित्रा पृथ्वी के अन्तिम भाग में मेरा गिरि के तल भाग के व्यास ( चौड़ाई ) का प्रमाण प्रत होता है, तथायोजन घटने पर १ योजन ऊंचाई प्राप्त होता है, तब ९० ऊँचाई प्राप्त होगी ? इस प्रकार त्रैराशिक करने पर ९०३९ अर्थात् तल अर्थात् चित्रा पृथ्वी के अन्तिम भाग से पृथ्वी पर्यन्त मेरु की ऊंचाई का प्रमाण प्राप्त होता है । योजन घटने पर कितनी २१००० योजन मे नन्दन वन पृथ्वी तल से ५०० योजन की ऊंचाई पर स्थित है। पूर्व गाथा में प्रमाण ४५६५ योजन प्राप्त हुआ था इसे भूमि विस्तार १०००० योजन में से ४५६६ )= ६६५४६५ योजन नन्दन वन के बाह्य व्यास का प्रमाण प्राप्त हुआ। मदन ( १०००० वन के एक पार्श्व भाग की चौड़ाई ५०० योजन है, अतः दोनों पाश्वं भागों की ( ५००x२ ) - १००० योजन चोड़ाई का प्रमारण नन्दन वन के बाह्य व्यास ( ६६५४६ ) में से घटा देने पर ( ६६५४ १५ १००० ६९५४६५योजन समयन्द्र स्वरूप नन्दनवन के सभ्यन्तर व्यास का प्रमाण प्राप्त होता है अर्थात् नन्दन वन के अभ्यन्तर व्यास का प्रमाण ६५५४२५ योजन है । अ समोसे धानयनप्रकार माइ LA एयारं सोसर एगुदओ दसम किं लद्धं । णंद सोमणसुवरिं सुदंसणे सरिसरुदुदयो ।। ६१६ ।। एकादशांशापरणे एकोदयः दशशतेषु किं कथं । नन्दन सोमनसोपरि सुदर्शने सदृशषद्रोदयः ॥ ६१६ ।। इसको हानि का घटा देने पर एयारे एकादशा से पसरणे एकयोअनोवयश्चेद्दशशता १००० पसरणे कि लब्धमिति सम्पातिले ११००० सुदर्शनोपरिमनन्दन सौमनसयोः प्रत्येकं समदन्द्रोदयः स्यात् । सीमनसा निश्वये ४६८१६५ मन्दमात्परतरण्यासे ८६५४५५ प्रपनीते ४२७२६ सौमन से बाह्यव्यासः स्यात् । सौमनस हानिशशिनः ४६मेलनं कृष्णा एयारंसेत्याविविधिना साध्या ५१५०० सौमनसपर्यन्तमुत्सेधः । सौमनसायासे ४२७२६ सोममथ्यास ५०० पाइाद्विगुणीकृत्य १०००
SR No.090512
Book TitleTriloksar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Siddhant Chakravarti, Ratanchand Jain, Chetanprakash Patni
PublisherLadmal Jain
Publication Year
Total Pages829
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size19 MB
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