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________________ 3 गाथा ६१५ नवति ग्लोकाधिकार ५१७ ( समान चौड़ाई) से ऊपर सौमनस वन की ५१५०० योजनों पर कितनी वृद्धि एवं हानि होगी ? इस प्रकार राशिक करने पर मेस्नल व्यास की वृद्धि का प्रमाण ( 19 ) = ६०६६ योजन, नन्दन दन तक हानि का प्रमाण ( ) - ४५ योजन और सौमनस वन तक हानि का प्रमाण (१०० ) = ४६६१योजन प्राप्त होता है। तुम समरुन्द्र स्थान से २५००० योजन पाण्डुक वन तक ०० = २२७२५६ योजनों की हानि होती है। विशेष :- नन्दन वन से ६२५०० योजन ऊपर जाकर सौमनस वन है, किन्तु उपयुक्त गाथा टीका में सौमनस वन तक हानि के लिए ऊंचाई का प्रमाण ५१५०० योजन कहा है इसका कारण यह है कि यह मे कम से हानि रूप होता हुआ पृथ्वी से ५०० योजन ऊपर जाकर उस स्थान पर एक साथ योजन सचित जाता है, इसीलिए दोनों ओर चौड़ाई में १००० योजन की हानि हो जाती है अतः उस हानि को पूरा करने के लिए सब ओर ११००० योजन तक समान चौड़ाई है। वहां से पुनः कम में हानि रूप होकर ५१५०० योजन प्रमाण ऊपर जाने पर वह पवंत पुनः युगपत् सर्वं ओय ५०० योजन संकुचित होता है। यहाँ ११००० योजन समद्र प्रमाण रहने के बाद २५००० योजन ऊपर तक क्रम से हानि रूप गया है इसीलिए पाण्डुक वन तक हानि का प्रमाण निकालने के लिए २५००० योजनों का ग्रहण किया गया है। (वि० प० भा० पृ० ३७६ ) सगसगाणिविही भूवासे चयजुदे मुहब्बासे । मिरिण हिरव्यंतर तल चित्थारप्यमा होदि ।। ६१५ ।। 10 area कहानिविहीने भूष्या से चययुते मुखव्यासे । गिरिवनबासाम्यन्तरतलविस्तारमा भवति ॥ ६१५ ॥ सग। मेरोस्तत्तत्करणयगतभूप्यासे स्वकीयस्वकीयहानौ विहोनायां सत्यां तचन्मुखमासे तत्तषये युते पति गिरेस्तला विविस्तारप्रमाणं भवति, वनस्य बाह्याभ्यन्तर विस्तारप्रमाणं च भवति । प्रागानीसमेत हानियये ९०११ मेरो भूपाले १०००० मिलिते सति १००१०३ चित्रातले व्यासो भवति । तत्र तस्यां [हाना १० बचनोताय १०००. मेरोर्भूव्यासः । एतावत्पपसरणे एकयोजनोवयइत्येतावति २०११ पसरणे क्रियानुश्य इति सम्पारण समच्छेदेन से अंजिनि मेलयित्वा ११ ते १००० मेरोभू ध्यासपर्यन्तमुत्सेषः स्यात् । मन्दनस्य हानिवय ४५ भूध्यासे १०००० अपनी ६६५४६ नन्दनाभ्यासः स्यात् । तानियां अंशिनः ४५ सम सम्मेल्यएसाववपसर ने एकपोनोवयश्वे देवावदपसरणे किमिति सम्पास्यापतिते ५०० भद्रालान्नन्दनपर्यन्तमुत्सेधः स्यात् । नन्दनमापासे ६६५४५ मन्दनध्यासं ५०० उभयपाश्र्वाचं द्विगुणीकृत्य १००० प्रपनो ८६५४५ समन्त्र रूप नन्दन। भ्यन्तरण्यासः स्यात् ।। ६१५ ॥ पार्थ :- मेघ के अपने अपने भूव्यास में से हानि का प्रमाण घटा देने पर तथा अपने अपने
SR No.090512
Book TitleTriloksar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Siddhant Chakravarti, Ratanchand Jain, Chetanprakash Patni
PublisherLadmal Jain
Publication Year
Total Pages829
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size19 MB
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