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पापा । ६०२
क्रमांक
तत्तोररण । तत्तो रह्याना विस्तारः स्वकीयनयोध्यास ६ सदृशः उदयन्तु व्यासात् द्वितीयार्थ गुण्यः ६ | सर्वत्र लोररणानां गावः प्रधंयोजनप्रमितं भवेत् ।। ६०२ ॥
१
तोरणवित्थारो सगसगण दिवाससरिसको उदभो । वासादु दिगुणोदय होगा ॥ ३०६ ॥ तत्तोरण विस्तारः स्व कवक नदीव्यास सहशकः उदय । । व्यासात् द्वयगुण्यः सर्वत्र दलं भवेत् गाधः ।। ६०२ ।।
गाथार्थ :- उन तोरणों का विस्तार अपने अपने ( निगम ) नदी व्यास के सदृश है तथा ऊंचाई व्यास की डेढ़गुरणी है । तोरणद्वारों की गहराई अर्थात् नींव सब जगह मात्र अर्ध योजन प्रमाण है ।। ६०२ ।।
विशेषार्थ :- अपने अपने नदी निगम व्यास सदृश तोरणों की चौड़ाई है। चोड़ाई से डेढ़ गुणी ऊंचाई है। जैसे - गंगा नदी का निर्गम व्यास ६ योजन है, अतः पद्मद्रह के तोरण द्वार की चौड़ाई भी ६४ योजन है, और ऊंचाई ( ३ ) - अर्थात् ९1⁄2 योजन है । तोरण द्वारों की नींव का प्रमाण सर्वत्र योजन है ।
नदी के निगम, प्रवेश, प्रणालिका एवं तोरण द्वारों का योजनों में प्रमाण :
७
नदियों के नाम
गंगा-सिन्धु
रोहित रोहितास्या
हरित् - हरिकान्ता
सीता-सोतोदा
नारी-नरकान्ता
सुवणं ०- रूप्यकूला
रक्ता-रक्तोदा
नर तिर्यग्लोकाधिका
प्रणालिका की
ww
ऊंचाई : लम्बाई
चौड़ाई। निर्गम व्यास
१
४
R
१
२
४ ५०
२
नदियों का
Pir
६४ ६४ | ६२३
१२३ १२३| १२५
२५ | २५ | २५०
རོབ
प्रवेश यहराई
व्यास
(नींव )
५*
२५ २५ २५०
१२३ | १२३ १२५
६३ ६४ ६२३
Phy
१
२
४
२
१
तोरण -द्वारों की
ऊंचाई
९
ཏ་ས
- १८३
+ - ३७३
७५ योजन
२०७३
१८३
=१६
बीड़ाई
૧
૧૨:
२५
५०
२५
१ २ ३