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________________ त्रिलोकसार पाथा : ६०३ अथ पूर्वोक्तवर्षवर्षधरपर्वलानां विस्तारानमने करणसूत्रमाह विजयकुलद्दी दुगुणा उभयंतादो विदेहवस्सोधि । गुणपिंडदीवसगगुणगारो हुपमाणफलइच्छा ।। ६.३ ।। विजयकुलाद्रयः द्विगुणा उभयांतत: विदेहवर्षान्तं । गुणपिण्डद्वीपस्वकगुणकारो हि प्रमाणफलेच्छाः । ६०३ ॥ विषय । विजया वेशा इत्यर्थः कुलाव्यश्न उभयांततः विवेहपर्यन्तं विगुरादिगुणा भवन्ति, कारण गोगलकीयगुणकारा: भर० १ हिम० २ हेम०४ यशसंख्य प्रमाण फलाच्याः खलु । अनेन राशिकेन तत्र क्षेत्रपर्वतानां विस्तार मानेतन्यः ।। ६.३ ॥ अथ पूर्वोक्त वर्ष । क्षेत्र ) एवं वर्षधरों ( पर्वनों ) का ध्यास लाने के लिए करण सूत्र कहते हैं: गापा:-विजय-क्षेत्र और फुलाचल ये दोनों दक्षिण दिशा से विदेई पर्यन्त और उत्तर दिशा से भी विदेह पर्यन्त दूने दूने विस्तार वाले हैं। इनके विस्तार का प्रमाण प्रात करने के लिए यहाँ गुणकारपिण्ड, द्वीप और अपनी अपनी गुणकार शलाकाएं ही क्रमशः प्रमाण, फल और इच्छा राशि स्वरूप हैं ॥ ६.३ ॥ विशेषार्थ:-जम्बुद्वीप के भीतर दक्षिण की ओर भरतक्षेत्र है, और उत्तर की ओर ऐरावत क्षेत्र है। भरत क्षेत्र से कुलाद्रि का विस्तार दूना, कुलाचल से क्षेत्र का, फिर क्षेत्र से कुलाचल का इस प्रकार विदेह पर्यन्त दूना दूना है। इसी प्रकार ऐरावत क्षेत्र से विदेव पर्यन्त क्षेत्र से कुमाचल और कुलाचल से क्षेत्र का विस्तार दूना दूना है। इनके विस्तार का प्रमाण राशिक विधि से प्राप्त करने के लिए यहाँ गुणकार पिण्ड प्रमाण राशि है, द्वीप का 1...०० योजन विस्तार फल राशि है और अपनी अपनी गुणकार शलाकाएँ इच्छा राशि हैं । गुणकार पिपड़ :-जम्बूद्वीप का बिस्तार १००००० योजन का है, इसके निम्न प्रकार १९. विभाग हुए हैं-१ परत + २ हिमवान +४ हैमवत +८ महाहिम + १६ हरिवर्ष + ३२ निषध+ ६४ विदेह+३२ नील+१६ रम्यक+८ रुमी+४ हैरण्यवत+२ शिखरी और+१ऐरावत-१९० यही गुणकार पिण्ड है। उपयुक्त प्रमाण, फल और इच्छा राशि का राशिक करने पर विवक्षित क्षेत्र या कुलाबल के विस्तार का प्रमाण प्राप्त होता है। यथा :-जबकि १६० गुणकार राशि का विस्तार १००००० योजन है सब ( विवक्षित) ८ गुणकार शलाका का कितना विस्तार होगा? इस प्रकार ८ शलाका है जिसकी उस महाहिमवान् पर्वत का विस्तार ( 400 ) = 922° अर्थात् ४२१०११ पोजन प्रमाण हुआ । इसी प्रकार अन्यत्र भी जानना चाहिए ।
SR No.090512
Book TitleTriloksar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Siddhant Chakravarti, Ratanchand Jain, Chetanprakash Patni
PublisherLadmal Jain
Publication Year
Total Pages829
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size19 MB
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