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________________ पापा:४. लोकयामात्याधिकार (३) इन आठ मध्य प्रदेशों के अवलम्बन से लोकाकाश की चार दिशाओं का व्यवहार होता है। (४) भरहन्त केवली तेरहवें गुणस्थान के अन्तमें जब केवलिंसमुद्घात करते हैं, तब लोक पूर्ण अवस्था में इन आठ मध्य के प्रदेशों पर केवली के आठ मध्य प्रदेश स्थित होकर लोकाकाश को त्याप्त करते हैं। अथ लोकविप्रतिपत्तिनिरासार्थमाह लोगो अकिहिमो खलु अणाइणिहणो सहावणिव्ययो । जीपाजीवेहि फुडो सब्वागासवयवो णिच्चो ॥४॥ लोकः अकृत्रिमः खलु अनादिनिधनः स्वभावनिवृतः । जीवाजीवः स्फुटः सकाशाव ययः नित्यः ॥ ४॥ लोगो। प्रषिकारामतस्य लोकपपस्य पुनरुपादानं लोकमनूध दूषणा । लोकोस्तीति । पनेन विशेषणेन शून्यवावनिराकृतिः हता। प्रकृत्रिमः खलु, प्रमेश्वरकर्तृकरवं निराकृतम् । अनादिनिधनः । अनेन सृष्टिसंहार निराकरणं । स्वभावनिर्वसः। प्रमेन परमादारमतानिराकृतिः । बोपाजोवैः स्फुर: मनेम मायावारिनिराकरणं | सकिाशावयः । अमेन प्रलोकाभाववावापहारः । निस्यः । मनेन माणिकमनिरासः । एतावता सपनेम लोक्यत इति लोकः इति षाग्यसमवायस्प लोकत्वमुक्तम् ॥४॥. लोकके अन्यथा स्वरूप के श्रद्धान को दूर करने के लिये कहते हैं: गाथा :-निश्चय से लोक अकृत्रिम, अनादिनिधन, स्वभाव से निष्पन्न, जीवाजोवादि द्रव्यों से सहित, सर्वाकाश के अवयव स्वरूप और नित्य है ॥ ४॥ वियोषा:-लोक का अधिकार तो था ही, किन्तु यहाँ लोक शब्द का ग्रहण शून्यवादी का निराकरण और 'लोक है' इसकी सिद्धि के लिये किया गया है। अकृत्रिम-इस पद से 'लोक का कर्ता ईश्वर है' इसका खण्डन किया गया है। अनादिनिधनः-इस पद से सृष्टि का संहार मानने वाले मत का खण्डन किया गया है। स्वभावनिवृत्त:-इस पद से 'परमाणु वारा लोक का आरम्भ हुमा है' इस मान्यता का निरसन किया गया है। जीवाजीवः स्फुटः-इस विशेषण से 'लोक. मायामय है' इस मान्यता का खण्डन किया गया है। सर्वाकाशावयवः- इस विशेषण से जो अलोकाकाश का अभाष मानते हैं-उनके मत का निराकरण किया गया है। नित्य :--इस पद से लोक को क्षणिक मानने वाले शरिएकमत का बडन किया गया है। इस कथन से जो देखा जाता है, उसे लोक कहते हैं। अथवा यह प्रध्यों के समवाय को लोक कहते हैं। १ निरात्मकरणं (५०) ।
SR No.090512
Book TitleTriloksar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Siddhant Chakravarti, Ratanchand Jain, Chetanprakash Patni
PublisherLadmal Jain
Publication Year
Total Pages829
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size19 MB
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