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________________ वाचा : ५९९-६०० नरति ग्लोकाधिका विजया की गुफा के भीतर से होती हुई दक्षिण ऐरावत क्षेत्र के अर्थ प्रमाण भाग तक दक्षिणाभिमुख ही बाती है। पश्चात् पूर्व की ओर मुड़कर १४००० परिवार नदियों के साथ जम्बूद्वीप के फोट स्थिल द्वारा सेवा समुद्र में प्रवेश करती है । रक्तोदा नदी उसी शिखरी पर्वत पर स्थित महा पुण्डरीक ग्रह के पश्चिम तोरण द्वार से निकल कर सिन्धु नदी के सदृश पर्वत पर ही पश्चिमाभिमुख जाती हुई रक्तोदाकूट को अर्धयोजन दूर से छोड़कर उत्तर की ओर मुड़ जाती है, तथा उसी दिशा में बहती हुई रक्तोदा कुण्ड में गिरती है। तत्पश्चात् कुण्ड के उत्तर द्वार से निकलकर गुफा के भीतर से होती हुई उत्तर ऐरावत क्षेत्र के अर्थ भाग तक उत्तराभिमुख ही आती है। पश्चात् पश्चिम की ओर मुड़कर १४००० परिवार नदियों के साथ जम्बूद्वीप को जगती के बिल से लवण समुद्र में प्रवेश करती है। अथ रक्तारक्तोदादीनां प्रणालिकादिप्रमाणमाह--- गंगादुर्ग व रचारचोदा जिन्मियादिया सवे | साणं षिय या तेवि विदेहोति दुगुणकमा || ४९९ ॥ गंगाद्विक व रक्तारक्तोदा जिह्निकादिका सर्वे । शेषाणामपि च ज्ञेयाः तैपि विदेहान्तं द्विगुणक्रमाः || ४६६ ॥ गंगा गंगाद्विकमित्र रकारकोवयोजिह्निकादिप्रमाणविशेषाः सर्वशेषनवीनामपि येते प्रालिकावयः सर्वेऽपि विदेहपर्यन्तं द्विगुणमा शेया ॥ ५६ ॥ रक्ता रक्तोदा मादि नदियों की प्रणालिका आदि का प्रमाण कहते हैं --- ५०५ गाथार्थ :- गंगादिक अर्थात् गंगा सिन्धु के सदृश रक्ता रक्तोदा की जिह्निका आदि का प्रमाण है, तथा अवशेष समस्त नदियों को प्रणालिकादि का प्रमाण विदेह पर्यन्त दूना दूना जानना चाहिए ।। ५६६ ।। विशेषार्थ :- गंगा और सिन्धु की जिह्निका आदि का जो प्रमाण है वही प्रमाण रक्ता रक्तोदा नदियों का है। मात्र नाम (संज्ञा ) परिवतन है। जैसे :- पद्मद्रह के स्थान पर महा पुण्डरीक द्रह हिमवन् नग के स्थान पर शिखरी नग इत्यादि । शेष सभी नदियों की जिह्निका आदि का सभी प्रमाण विदेह पर्यन्त दूना दूना ही जानना चाहिए। अथ तासां नदीनां विस्तारमाह ६४ गंग रचदु वासा सपाद वणिग्गमे विदेहोति । दुगुणा दसगुणमंते गाहो वित्थार पण्णंसो ।। ६०० ॥ गाद्वयोः रक्ताद्वयोः व्यासाः सपादपट् निर्गमे विदेहान्तम् । द्विगुणा दशगुणा अन्ते गाघः विस्तारः पश्चाशदंशः ॥ ६०० ॥
SR No.090512
Book TitleTriloksar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Siddhant Chakravarti, Ratanchand Jain, Chetanprakash Patni
PublisherLadmal Jain
Publication Year
Total Pages829
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size19 MB
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