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________________ ३४ त्रिलोकसार पाषा: ५९८ छोड़कर पूर्वाभिमुख होती है। पश्चात दक्षिणाभिमुख होती हुई मान्यवन्त पर्वत की दक्षिणमुख याली गुफा में प्रवेश करती है । पश्चात् उस गुफा से निकल कर पूर्व विदेह के ठीक बोच में से पूर्व की ओर जाकर उत्तर कुरु की ८४००० + १६८००० (६ विभङ्गा की+४४८७३८ (पूर्व विदेह की)= ७०००३८ नदियों को अपने परिवार सदृश ग्रहण करती हुई जम्बूदीप को जगती के बिल द्वार में से लवण समुद्र में प्रवेश करती है। नरकान्ता नदी नील पवंस पर स्थित केसरी दह के उत्तर द्वार से निकलकर नील पर्वत के तर पर्यन्त पूर्वोक्त प्रमाण ७४२१११ योजन आगे जाकर रम्यक क्षेत्र सिथत नरकान्त कुण्ड के मध्य गिरती हुई उत्तर की ओर से निकलती है । पश्चात् पद्मवान् नाभिपवंत को प्रदक्षिण रूप करके रम्यक क्षेत्र के मध्य मे जाती हुई, पश्चिमाभिमुख होकर ५६००० परिवार नदियों के साथ लवण समुद्र में प्रवेश करती है। नारी नदी रुक्मी पर्वत पर स्थित पुण्डरीक द्रह के दक्षिण द्वार से निकल कर रुक्मी पवंत के तट पर्यत १६.४ योजन आगे जाकर नारी कुण्ड में गिरती है, पश्चात् कुण्ड के दक्षिण तोरण द्वार से निकलकर दक्षिण मुख होती हुई पद्मवान् नामक विजया पर्वत तक आती है, तथा उसे आधा योजन दूर छोड़कर रम्यक भोगभूमि के बहमध्य भाग में से पूर्व की ओर जाती हुई ५६०.. परिवार नदियों के साथ जम्बूद्वीप के बिल द्वार में से लवण समुद्र में प्रवेश करती है। ____रूप्यकूला नदी रुक्मी पर्वत के पुण्डरीक द्रह के उत्तरद्वार से निकल कर उत्तर की ओर गमन करती हुई रुवमी पर्वत के तट पर्यन्त १६०५५ योजन प्रागे जाकर हैरण्यवत क्षेत्र में रूप्यक्रूल नामक कुण्ड में पड़ती है, तत्पश्चात कुण्ड के उत्तर द्वार से निकल कर उत्तर की ओर ही गमन करती हुई गन्धवान् ( विजयाचं ) नाभिगिरि को अर्धयोजन छोड़ती हुई प्रदक्षिणा रूप से पश्चिम की ओर जाती है। तथा २८००० हजार परिवार नदियों से संयुक्त होकर दीप की अगती के बिल में से जाती हई लवण समुद्र में प्रवेश करता है। सुवर्णकूला नदी शिखरी शैल पर स्थित महा पुण्डरीक नह के दक्षिण द्वार से निकल कर शिक्षरी पर्वत के तट पर्यन्त २७६ पोजन आगे जाकर सुवर्णकल कुण्डमें गिरती है। तत्पश्चात् कुण्ड के दक्षिण द्वार से निकल कर दक्षिणाभिमुख हो गन्धवान् नाभिगिरि को प्रदक्षिणा करतो हुई, उसके आधा योजन पूर्व से ही हैरण्यवत क्षेत्र के अभ्यन्तर माग में से पूर्वदियाा की ओर जाकर २८००० परिवार नदियों सहित जम्बूद्वीप सम्बन्धी जगती के बिल में से लवण समुद्र में प्रवेश करती है। रक्ता नदी शिखरी शैल के अग्रभाग में स्थित महा पुण्डरीक द्रह के पूर्व द्वार से निकल कर शिखरी पर्वत पर पूर्वाभिमुख ५०० योजन जाकर रसा कूट को आधा योजन दूर से छोड़ती हुई दक्षिण की ओर मुड़ जाती है। दक्षिण दिशा में भी उसी शिखरौ पवंस पर साधिक अर्ध कोस अधिक ५.०० योमन झागे जाकर रक्ता कुण्ड में गिरती है। तत्पश्चात् कुण्ड के दक्षिण तोरण द्वार मे निकलकर
SR No.090512
Book TitleTriloksar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Siddhant Chakravarti, Ratanchand Jain, Chetanprakash Patni
PublisherLadmal Jain
Publication Year
Total Pages829
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size19 MB
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