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पाया।
नरातलीकाधिकार गाथार्थ :-[ विजया की गुफा से निकल कर ] गंगा नवी दक्षिण भरत के अचं भाग पर्यन्त सीधी आकर पूर्व दिशा के सन्मुख मुड़ती हुई अन्ततः मागध द्वार से लवण समुद्र में प्रवेश करतो है ।। ५९६ ॥
विशेषाः-खण्ड प्रपात गुफा से निकल कर गंगा नदी दक्षिण भरत क्षेत्र के अचं भाग अर्थात् ११६ योजन पर्यन्त सोषी आती है । इतने क्षेत्र प्रमाण कसे आती है ? भरतक्षेत्र का प्रमाण ५२६ योजन प्रमाण है, इसमें से ५० योजन विजयाध का ग्यास घटा देने पर ( ५२६१-.)४७ योजन शेष रहे । इसे आधा करने पर ( ४७६९२)२३० योजन दक्षिण भरत क्षेत्र का प्रमाण प्राप्त हुआ, गंगा नदी गुफा से निकल कर दक्षिण भरत के अर्धभाग पर्यंत माई है, अतः दक्षिण भरत के प्रमाण को आधा करने पर ( २३२)-१९ योजन प्राप्त हुभा । अर्थात दक्षिण भरत में ११९३० योजन आकर गंगा नदी पूर्व में मुड़ कर हाई म्लेच्छ बाहों में से १४००० प्रमाग परिवार नदियों को लेकर मागध द्वार के भीतर जाकर लवणसमुद्र में प्रवेश करती है । बार्यखममें प्रलय पड़ता है इसलिए इसमें कोई अत्रिम रचना नहीं है। इदानी सिन्धुनदीस्वरूपं निरूपयति
गंगसमा सिंधुणदी अवरमुद्दा सिंधुकूडविणिविता । तिमिसगुहादवरंघुहिमिया पमासक्खदारादो || ५९७ ।। गंगासमा सिन्धुनदी अपरमुखा सिन्धुकूटविनिवृत्ता।
तिमिसागुहादपराम्बुधिमिता प्रभासाख्यद्वारतः ।। ५७ ॥ गंग। गापा या वर्णनोक्ता तत्समा सिन्धुनही । अयं विशेषः । इयं स्वपरविमिमुक्षा सिन्धुफूटाद्विनिवृत्य तमिसगुहां प्रविश्य सतोऽपिमिगस्य प्रमासाक्यवारतोऽपराम्बुधिमिता' । शेषं सर्ग गंगावाषयन्तम्पम् ॥ ५९७ ॥
अब सिन्धु नदी के स्वरूप का निरूपण करते हैं :
गावार्थ :-गंगा के सदृश हो सिन्धु नदी का वर्णन है । विशेष इतना है कि सिन्धु नदी पद्मद्रह के पश्चिम द्वार से निकलकर सिन्धुकूट को नहीं प्राप्त होती हुई, विजया की तिमिस्र गुफा में प्रवेश कर तथा उससे निकल कर प्रभास नाम द्वार से पश्चिम समुद्र को प्राप्त होतो
विशेषार्थ:-सिन्धु नदो का सम्पूर्ण वर्णन गंगा नदी के वर्णन के सदृश हो है विशेष इतना है कि सिन्धु नदी पद्मद्रह के पश्चिम द्वार से निकलकर ५.० योजन प्रमाण आगे जाकर सिन्धुकूट को प्रास न करती हुई अर्थात् उससे आधा योजन पहिले ही दक्षिण की ओर मुड़कर गंगा के सदृश ही मागे
१ मिलिसा ( 40 )।